पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


एक स्वरसे निन्दा की है और जिसका औचित्य, जितनी निष्पक्ष बुद्धिसे मैं सोच सकता हूँ उतनी निष्पक्ष बुद्धिसे सोचते हुए कहूँगा, किसी भी आधारपर सिद्ध नहीं किया जा सकता।

सूरत में जितना कुछ देनेका प्रस्ताव किया गया है, वह उससे भी कम है जितना कि कुछ विश्वसनीय अफवाहोंके अनुसार खानगी तौरपर देनेका वादा किया गया था। श्रीयुत वल्लभभाई पटेलने जो शर्तें रखी हैं, वे वही हैं जो सदासे उनके मनमें रही हैं और जिनसे वे तरह-तरहसे सरकारको भी अवगत कराते रहे हैं। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा है जो सम्मानपूर्ण समझौतोंमें सदासे न किया जाता रहा हो। यदि यह स्वीकार कर लिया जाता है–जैसा कि कई अप्रत्याशित हलकोंमें भी किया गया है–कि बारडोली और वालोडकी जनताने, जो चीज उसके लेखे एक सिद्धान्तका सवाल है, उसके लिए घोर कष्ट सहे हैं, तो यह मानना होगा कि उसने यह सब सिर्फ इसीलिए नहीं सहा कि कुछ व्यक्तियोंके मामलोंकी जाँच एक छोटे राजस्व अधिकारीसे करा दी जाये। सरकारने जिस जाँचका प्रस्ताव किया है वह वास्तवमें ऐसी ही जाँच है। इसी तरह जनतासे यह अपेक्षा भी नहीं की जा सकती कि वह उस कीमती जमीनको अपने हाथ से निकल जाने दे, जो उसके खयालसे अन्यायपूर्वक जब्त की गई है, न उससे यही अपेक्षा की जा सकती है कि अपनी टेकके पक्के पुरुषों और स्त्रियोंके नाते वह उन लोगोंको मुसीबत में पड़ा छोड़ दे, जिन्होंने सरकारके अन्यायके कारण इतनी यातनाएँ सही हैं। सरकारी प्रस्तावका मतलब तो यह निकलता है कि यद्यपि लोगोंने बढ़ी हुई दरसे लगान देने से इनकार करके गलत काम किया है, फिर भी यदि वे अपनी गलतीसे बाज आ जायें और उस रकमको अग्रिम जमा करवा दें जिसकी वसूलीको वे अन्यायपूर्ण मानते हैं तो सरकार अलग-अलग व्यक्तियोंके मामलोंकी सुनवाई फिरसे करानेका सौजन्य दिखायेगी। यह ऐसी स्थिति जिसे कोई भी सच्चा नेता, जबकि उसका मन यह नहीं मानता हो कि जनताने ऐसी कोई गलती की है और इसके विपरीत जब उसे पूरा विश्वास हो कि जनता सर्वथा सही रास्तेपर है और सरकार बिलकुल गलत रास्तेपर है, स्वीकार नहीं कर सकता।

फिर भी, श्रीयुत वल्लभभाईने सरकारकी तरह असम्भव शर्तें नहीं रखी हैं। वे सरकारसे यह नहीं कहते कि वह स्वीकार करे कि वह गलतीपर है। उनके पत्रका सार यदि एक वाक्यमें बताऊँ तो यह है कि उन्होंने सरकारसे इस सवालको उसकी अपनी पसन्दकी एक कमेटीको सौंप देनेको कहा है और उसमें केवल यह एक शर्त, जो सर्वथा उचित है, रखी है कि उसमें जनताका भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो। और सरकारके प्रस्तावके जवाब में अपना यह प्रस्ताव सामने रखते हुए वे सरकारसे ऐसी निष्पक्ष समितिकी नियुक्तिसे निकलनेवाले स्वाभाविक और तर्कसम्मत परिणामको स्वीकार करने को कहते हैं; अर्थात् यह कि इस संघर्षके छिड़नेसे पहलेकी स्थितिको फिरसे कायम कर दिया जाये। मैं तो कहूँगा कि यदि वे इससे कुछ कमकी माँग करते या उसे स्वीकार करते हैं तो इसका मतलब यह होगा कि उन्होंने अपने दायित्वका निर्वाह नहीं किया। उनके प्रस्ताव में सरकारको नीचा दिखानेका न