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तार: मोतीलाल नेहरूको


कोई मंशा है और न ऐसी कोई बात मौजूद है, जिसका मतलब प्रकारान्तरसे सरकारको नीचा दिखाना हो। सारी परिस्थितियोंको वे बिलकुल यथार्थ दृष्टिसे देखते हुए चल रहे हैं और उन्हें इस बातकी बड़ी फिक्र है कि कोई सम्मानजनक समझौता हो जाये। इसलिए उन्होंने सरकारके सामने न्यूनतम माँगें ही रखी हैं। वैसे, यदि वे चाहें तो बेशक सरकारकी राजस्व नीतिके पूरे प्रश्नको उठा सकते हैं और पिछले चार महीनोंमें बिना किसी दोषके जनताको जैसी भयंकर क्षति उठानी पड़ी है, उसकी पूर्तिकी माँग कर सकते हैं।

सरकारके सामने दो रास्ते हैं – या तो वह भारतके जनमतके सामने झुककर श्रीयुत वल्लभभाईके प्रस्तावको स्वीकार कर ले या फिर अपनी झूठी प्रतिष्ठाकी रक्षा करनेके लिए लोगोंको आतंकित करनेकी नीतिका पुनः आग्रह करे। यदि देर न हो गई हो तो बम्बई सरकारसे मेरा अनुरोध है कि वह सत्यका मार्ग अपनाये।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, २६-७-१९२८

 

१०६. तार : मोतीलाल नेहरूको[१]

२३ जुलाई, १९२८

मुझे तो लगता है कि आपको यह भार विशेषकर बंगालके लिए अपने सिर लेना ही चाहिए। सेनगुप्तको तार दिया है।

गांधी

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६४५) की फोटो-नकलसे।

 

  1. यह तार मोतीहाल नेहरूके १९ जुलाईके पत्रके उत्तर में दिया गया था। पत्रके अन्त में उन्होंने लिखा था। "साथ भेजे जा रहे पत्र-व्यवहार और जो अन्य पत्र आपको मिले होंगे उनको ध्यान में रखते हुए इस 'ताज' के बारे में तार द्वारा अपना निर्णय सूचित करें।" उन्होंने अपने नाम लिखे दो पत्र (एस॰ एन॰ १३६४६) भी गांधीजीको देखनेके लिए भेजे थे। उनमें से एकमें, जो सुभाषचन्द्र बोसका लिखा था, कहा गया था कि "यदि आप किसी कारणवश अध्यक्षता अस्वीकार कर देते हैं तो मैं कह नहीं सकता कि पूरे बंगालको कितनी निराशा होगी।" दूसरे में जे॰ एम॰ सेनगुप्तने लिखा था कि "कल मुझे महात्माजीका तार मिला, जिसमें उन्होंने सूचित किया है कि आप कांग्रेसकी अध्यक्षता स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इस समाचारसे मैं स्तम्भित रह गया . . .। हम एकमत होकर महात्माजीको आपसे इसे स्वीकार करने का आग्रह करनेके लिए तार भेज रहे हैं. . .। हम तो आपको अध्यक्ष बनायेंगे ही। . . . आपको देशके भीतर और बाहर इस राजनीतिक संकटको घड़ीमें अध्यक्ष बनकर हमारा नेतृत्व करना ही है।. . ." देखिए "पत्र: सुभाषचन्द्र बोसको", १८-७-१९२८ भी।