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१०९. काँटोंका ताज

कांग्रेसका अध्यक्ष पद अब फूलोंकी सेज नहीं रह गया है। फूलोंकी पँखुड़ियाँ तो हर साल झरती जा रही हैं और काँटे अधिकाधिक उभरते आ रहे हैं। ऐसे ताजको किसे पहनना चाहिए? पिताको या पुत्रको? तपे-परखे सेनानी मोतीलाल नेहरूको या अनुशासन-प्रिय सिपाही जवाहरलालको, जिसने अपने सच्चे गुणोंके कारण देशके युवकोंके मनको जीत लिया है? श्रीयुत वल्लभभाई पटेलका नाम स्वभावतः सभीकी जिह्वापर है। पण्डितजीने एक निजी पत्रमें कहा है कि इस समय तो राष्ट्रके सबसे बड़े सेनानीका काम वही कर रहे हैं, इसलिए अध्यक्ष उन्हींको चुना जाये और सरकारको बता दिया जाये कि उन्हें राष्ट्रका पूरा विश्वास प्राप्त है। किन्तु अभी तो श्रीयुत वल्लभभाईका सवाल ही नहीं उठता। उनके सिर इतना ज्यादा बोझ है कि उनके लिए बारडोलीके अलावा किसी और काममें ध्यान देनेकी गुंजाइश ही नहीं है और सम्भव है दिसम्बरसे पहले ही वे सरकारकी असंख्य जेलोंमें से किसी एकके मेहमान बन जायें। इस विषय में खुद मेरा विचार तो यह है कि यह ताज पण्डित जवाहरलालको पहनना चाहिए। भविष्य देशके युवकोंके हाथोंमें ही रहना चाहिए। लेकिन बंगाल चाहता है कि कांग्रेसकी किश्तीको, अगले साल हमारे संकटके जिस समुद्रमें घिर जानेकी आशंका दिखाई दे रही है, उसमें से खेकर पार लगानेके लिए उसकी पतवार मोतीलालजीको ही सँभालनी चाहिये। हमारे भीतर फूट है और बाहर हम एक ऐसे शत्रुसे घिरे हुए हैं जो जितना शक्तिशाली है उतना ही धूर्त भी। बंगालको किसी अनुभवी वयोवृद्ध नेताकी विशेष आवश्यकता है और आवश्यकता है उस नेताकी जो उसकी परीक्षा और कष्टकी घड़ी में उसके लिए शक्ति-स्तम्भ साबित हुआ है। यदि आज सम्पूर्ण भारतके सामने परिस्थिति विषम है तो बंगालके सामने तो विषमतर है। पण्डितजी को यह ताज पहननेके लिए चुना जाये, इसके अनगिनत कारण हैं। वे बहादुर हैं, उदार हैं, उन्हें सभी दलोंका विश्वास प्राप्त है, मुसलमान उन्हें अपना मित्र मानते हैं, उन्हें अपने विरोधियोंका भी सम्मान प्राप्त है और वे अक्सर अपने प्रखर वक्तृत्वके बलपर उनसे अपनी बात मनवा लेते हैं। इसके अतिरिक्त, उनके अन्दर सुलह-समझौतेकी गहरी भावना है, जिसके कारण वे उस राष्ट्रके विशेष उपयुक्त प्रतिनिधि हो सकते हैं जिसे सम्मानपूर्ण समझौतेको स्वीकार करनेकी जरूरत है और जो उसके लिए तैयार भी है। इन्हीं कारणोंसे प्रेरित होकर बंगालके परम साहसी और बलिदानी देशभक्त[१] भी आगामी वर्षके कर्णधारके रूपमें पण्डित मोतीलाल नेहरूको चाहते हैं। देशके अधीर युवक अभी कुछ समयतक प्रतीक्षा करें। इससे उनका बल और भी बढ़ेगा।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, २६-७-१९२८

 

  1. सुभाषचन्द्र बोस; देखिए "तार: सुभाषचन्द्र बोसको", २४-७-१९२८।