खुली और स्वतन्त्र जाँच" नहीं, बल्कि उसका उपहास है। सूरतसे जारी किये गये वक्तव्यमें बहुत सीमित ढंगकी जाँचकी तजवीज है। यह जाँच एक न्यायिक अधिकारीकी सहायतासे कोई राजस्व अधिकारी करेगा और इसका उद्देश्य तखमीने और तथ्योंकी भूलोंका पता लगाना होगा। यह चीज "सम्यक्, खुली और स्वतन्त्र जाँच" से सर्वथा भिन्न है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि जनता गवर्नर महोदयके भाषणमें भरी धमकियोंसे नहीं डरेगी और लोकमत उस एक ही मुद्दे पर अपनी सारी शक्ति केन्द्रित करेगा जिसका अभी मैंने उल्लेख किया है।
न्यायकी विजय
वर्धामें श्री लक्ष्मीनारायणका एक प्रसिद्ध और सुन्दर मन्दिर है। इसे सेठ जमनालालजीके पितामहने बनवाया था। यह एक निजी मन्दिर है, जिसमें जानेकी छूट आम लोगोंको भी है। जमनालालजी इस मन्दिरको तथाकथित अछूतोंके लिए खुलवाने की बड़ी कोशिश करते रहे हैं – उसी प्रकार जिस प्रकार उन्हें वर्धाके कुओंका उपयोग करनेकी छूट दिलाने और आम तौर पर वे सभी सुविधाएँ सुलभ करानेका बहुत सफल प्रयास करते रहे हैं जो अन्य वर्गीके लोगोंको प्राप्त हैं। उन्हें न्यासियोंको अपने इस विचारसे सहमत कराने में बड़ी कठिनाई हो रही थी कि इस विशेष मन्दिरके दरवाजे उन लोगोंके लिए खोल देने चाहिए जो अंधी कट्टरपंथिताके पैरों तले रौंदे जा रहे हैं। आखिर उनका प्रयास सफल हुआ। इसी महीनेकी १७ तारीखको न्यासियोंने सर्वसम्मतिसे निम्नलिखित प्रस्ताव पास किया:
तदनुसार वर्धामें इस आशयकी मुद्रित सूचना बड़े पैमाने पर वितरित की गई कि इसी १९ तारीख, अर्थात् इस प्रस्तावके पास होने के दो ही दिन बादसे यह मन्दिर 'अस्पृश्यों' के लिए खुला घोषित किया जायेगा। कहते हैं, यद्यपि उपर्युक्त सूचनाका वितरण करने के अलावा और कोई संगठित प्रयास नहीं किया गया, फिर भी अबतक अस्पृश्यों-सहित कोई १,२०० स्त्री-पुरुष और बच्चे इस मन्दिरमें आकर३७-७