पूजा-प्रार्थना कर गये हैं और कोई भी अशोभन घटना नहीं हुई है। यह बहुत ध्यान देने योग्य बात है कि वर्धा-जैसे महत्त्वपूर्ण स्थानमें एक प्रसिद्ध मन्दिरके द्वार अस्पृश्योंके लिए खोल दिये गये, लेकिन कट्टरपन्थियोंने विरोधकी आवाज बिलकुल नहीं उठाई और न लोगोंने सनातन धर्मके नाम पर, जब अस्पृश्य लोग इस हिन्दू-मन्दिरके पवित्र और अब तक उनके लिए वर्जित द्वारको लाँघनेकी कोशिश कर रहे थे तो, किसी प्रकारका उपद्रव ही किया। यह अस्पृश्यता निवारण आन्दोलनकी जबरदस्त प्रगतिका स्पष्ट प्रमाण है। इससे यह प्रकट होता है कि यदि हम स्थिर मनसे संकल्प कर लें और अपने उद्देश्यके लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहें तो सुधारके सच्चे आन्दोलनके पक्षमें बहुत स्वस्थ जनमत तैयार हो सकता है। मैं सेठ जमनालालजी तथा अन्य न्यासियोंको यह साहसपूर्ण कदम उठानेके लिए बधाई देता हूँ और यह आशा व्यक्त करता हूँ कि इस दृष्टान्तका अनुकरण सारे भारतमें किया जायेगा।
बिहारमें परदेका चलन
बिहारसे एक भाई लिखते हैं, बिहारमें परदेके चलनके खिलाफ कई महत्त्वपूर्ण स्थानोंमें जो संगठित प्रदर्शन किये गये, वे आयोजकोंकी आशासे भी अधिक सफल हुए। पटनाकी सभाके बारेमें 'सर्चलाइट' की रिपोर्ट इस प्रकार शुरू होती है:
सभामें स्वीकृत प्रस्तावका अनुवाद निम्न प्रकार है:
बिहार प्रान्तमें परदा-प्रथा के खिलाफ जोरदार प्रचार करने और स्त्री-शिक्षाका प्रसार करनेके लिए सभामें ही एक अस्थायी समितिका गठन किया गया। एक तीसरे प्रस्तावमें प्रत्येक शहर और प्रत्येक गाँवमें एक-एक महिला समितिके गठनकी सिफारिश