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की गई। फिर, इस आशयका चौथा प्रस्ताव पास किया गया कि विभिन्न स्थानोंमें महिलाश्रमोंकी स्थापना करनी चाहिए, जहाँ कुछ दिन रह कर स्त्रियाँ 'अच्छी गृहिणी', 'कुशल माता' और देशकी 'योग्य सेविका' बननेका प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। सभामें ही लोगोंने इस कामके लिए ५,००० रुपये देनेका वादा किया और देखता हूँ, दान देनेवालों में से कई महिलाओंने २५० से लेकर २५ रुपये तक दिये हैं। इस अखबारमें बिहारके अन्य स्थानोंमें आयोजित इसी तरहकी और भी सभाओंकी रिपोर्टें छपी यदि इस आन्दोलनको अच्छी तरह संगठित किया जाता है और उत्साहपूर्वक चलाया जाता है तो परदा-प्रथा समाप्त होकर रहेगी। ध्यान देनेकी बात है कि यह महिलाओं को अंग्रेजी रंगमें रँगनेका आन्दोलन नहीं है। यह आन्दोलन देशकी मिट्टीके सर्वथा अनुकूल है और इसका नेतृत्व ऐसे लोग कर रहे हैं जो स्वभावतः अपनी परम्पराओंके पोषक हैं, लेकिन साथ ही हिन्दू समाजमें जो बुराइयाँ घुस गई हैं, उन सबके प्रति भी जागरूक हैं। बाबू ब्रजकिशोरप्रसाद और बाबू राजेन्द्रप्रसाद, जो बहुत दूर लन्दनमें बैठे हुए इस आन्दोलनको गहरी रुचिसे देख रहे हैं और इसका समर्थन कर रहे हैं, कोई पाश्चात्य रंग में रंगे भारतीय नहीं हैं। वे सनातनी हिन्दू हैं और भारतीय संस्कृति तथा परम्पराओंसे उन्हें प्रेम है। वे पश्चिमका अन्धानुकरण करने-वाले नहीं हैं, लेकिन साथ ही उसमें जो-कुछ अच्छा है, उसे ग्रहण करनेमें भी नहीं हिचकिचाते। इसलिए डरने-झिझकनेवालों को मनमें ऐसा कोई भय रखने की जरूरत नहीं है कि यह आन्दोलन किसी भी रूपमें भारतीय संस्कृतिके सद्गुणों और विशेषकर नारी-सुलभ शील और सौन्दर्यके लिए, जो भारतके स्त्री-समाजका अपना विशिष्ट गुण है, बाधक होगा।

आश्रमका संविधान और नियम

सत्याग्रह आश्रमके संविधान और नियमोंके प्रकाशनके बादसे उसकी प्रतियोंकी माँग बराबर आती रही है। मगर इसे भेजनेमें यदि सिर्फ डाक-खर्चको ही देखा जाये तो वह भी खर्चकी कोई मामूली मद नहीं है। इसलिए जो लोग संविधानकी प्रति अपने पास रखना चाहते हों वे पैकिंग और डाकके खर्चके लिए एक-एक आनेके टिकट भेजनेकी कृपा करेंगे।

एक भूल-सुधार

श्रीयुत गोकुलभाई पटेल, जो बारडोलीके निमित्त सान्ताक्रुज तथा विलेपार्लेसे मिले चैक लाये थे, मेरा ध्यान 'यंग इंडिया' में इन अनुदानोंकी स्वीकृति प्रकाशित करनेमें हुई एक भूलकी ओर दिलाते हैं। जो नाम विलेपार्ले शीर्षकके अन्तर्गत आने चाहिए थे वे सान्ताक्रुजके अन्तर्गत आ गये हैं। इस भूलके लिए मुझे खेद है। 'यंग इंडिया' के कर्मचारियोंके सिर काम बहुत ज्यादा है, इसलिए तमाम सावधानीके बावजूद गलतियाँ होती ही रहेंगी। उदार पाठक ऐसी भूलोंके लिए, अगर वे इरादतन न की गई हों या इससे भी बदतर दर्जेकी भूलें न हों तो, क्षमा करेंगे।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, २६-७-१९२८