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स्वावलम्बनमें ही स्वाभिमान है

दुर्व्यवहार सहनेवाली गायकी — सेवा करनेकी आकांक्षा हो, उन्हें यह महत् कार्य सहायता देनेको आमन्त्रित करता है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २-८-१९२८

 

१३०. स्वावलम्बनमें ही स्वाभिमान है

इन स्तम्भोंमें अक्सर ऐसा सुझाव दिया गया है कि शिक्षाको अनिवार्य बनाने या कमसे-कम शिक्षा प्राप्त करनेको इच्छुक प्रत्येक बालक या बालिकाको शिक्षाकी सुविधा सुलभ करानेके लिए यह जरूरी है कि हमारे स्कूल और कालेज यदि पूरी तरहसे नहीं तो लगभग स्वावलम्बी बन जायें – लेकिन अनुदानों या सरकारी सहायता अथवा विद्यार्थियोंसे लिये शिक्षा-शुल्कके बल पर नहीं, बल्कि स्वयं विद्यार्थियोंके ऐसे श्रमके बल पर जिससे आयकी प्राप्ति हो। ऐसा करनेका एकमात्र तरीका औद्योगिक प्रशिक्षणको अनिवार्य बना देना है। वैसे तो इस बातकी प्रतीति दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक होती ही जा रही है कि विद्यार्थियोंको किताबी शिक्षाके साथ-साथ औद्योगिक प्रशिक्षण भी प्राप्त करना चाहिए, किन्तु इस देशमें औद्योगिक प्रशिक्षण देनेकी नीतिका पालन करनेका यह अतिरिक्त कारण है कि यहाँ शिक्षाको प्रत्यक्ष रूपसे स्वावलम्बी बनाना है। यह तभी हो सकता है जब कि हमारे विद्यार्थी श्रमकी महत्ताको समझने लगें और जब शारीरिक श्रमके बलपर किये जानेवाले कार्योंसे अनभिज्ञ होना लज्जास्पद बात मानी जाने लगे। अमेरिकामें अपना खर्च पूरा-पूरा या अंशतः अपनी मेहनतकी कमाईसे चलाना विद्यार्थियोंके लिए सबसे आम बात है, हालाँकि वह दुनियाका सबसे धनाढ्य देश है और इसलिए वहाँ शिक्षाको स्वावलम्बी बनानेकी शायद सबसे कम आवश्यकता है। ५०० रिवरसाइड ड्राइव, न्यूयार्क सिटीसे प्रकाशित, अमेरिकाके हिन्दुस्तान एसोसिएशनके अधिकृत बुलेटिन 'हिन्दुस्तानी स्टुडेंट', में इस सम्बन्धमें निम्नलिखित तथ्य प्रकाशित हुए हैं:[१]

यदि अमेरिकाके लिए अपने स्कूलों और कालेजोंको ऐसा रूप देना जरूरी है जिससे विद्यार्थी अपनी पढ़ाई-लिखाईके खर्चके लायक खुद कमा लें तो फिर हमारे

 

  1. इसका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें बताया गया था कि लगभग ५० प्रतिशत अमेरिकी विद्यार्थी अपनी गर्मीकी छुट्टियों और पढ़ाई के दिनोंका कुछ समय पैसा कमाने में लगाते हैं। स्वावलम्बी विद्यार्थी सम्मानकी दृष्टि से देखे जाते हैं। विद्यार्थियों के लिए बढ़ईगिरी, सर्वेक्षण, नक्शा तैयार करना, रँगरेजी, फोटो खींचना, गाड़ी चलाना और ऐसे ही अन्य कार्योंका व्यावहारिक ज्ञान होना जरूरी है। आगे यह जानकारी भी दी गई थी कि विश्वविद्यालयों और कालेजोंमें औद्योगिक इंजीनियरीकी शिक्षाकी व्यवस्था है, जहाँ काम करके विद्यार्थी अपने वर्ष-भरके शिक्षा-शुल्कके लिए पैसे तो कमा ही लेते हैं, साथ ही उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करनेका भी श्रेय मिलता है।