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सत्याग्रहकी मर्यादाएँ

रूप कायम रहे, इस खयालसे श्रीयुत वल्लभभाई पटेल श्रीयुत राजगोपालाचारी या किसी अन्य नेताको बारडोली आने देनेके लिए तैयार नहीं थे। इसकी बाग ढीली तो तब की गई जब सरकारने इसे राजनीतिक रंग दे दिया और दमनात्मक कार्रवाइयों द्वारा इसे एक अखिल भारतीय प्रश्न बना दिया और फलतः वल्लभभाईके लिए लोक-सेवी जनोंको बारडोली जाने से रोकना अशक्य हो गया, यद्यपि तब भी जब कभी उनकी अनुमति मांगी गई, उन्होंने यही कहा कि, 'नहीं, अभी नहीं।'

मैं नहीं जानता कि सरदार साहबके सुझाव पर श्रीयुत वल्लभभाई क्या कहेंगे, लेकिन मैं तो यही कह सकता हूँ कि 'नहीं, अभी नहीं।' अभी सहानुभूतिमें मर्यादित ढंगका सत्याग्रह करनेका भी समय नहीं आया है। बारडोलीको अभी यह साबित करना बाकी है कि वह खरी धातुका बना हुआ है। यदि बारडोली आखिरी आँच सह लेगा और यदि सरकार अन्तिम सीमा तक पहुँच जायेगी तो मैं या श्रीयुत वल्लभभाई चाहे जो करें, सत्याग्रहका प्रसार रुक नहीं सकेगा और न यह प्रश्न मामलेकी फिरसे ईमानदारीके साथ जाँच होने और उसके तर्कसंगत परिणामों तक ही सीमित रह पायेगा। तब तो सत्याग्रहकी सीमा इसी बातसे निर्धारित हो सकेगी कि सम्पूर्ण भारत कहाँतक आत्मत्याग कर सकता है। और उसमें स्वेच्छासे कष्ट सहनेकी कितनी क्षमता है। यदि ऐसी परिस्थिति बनती है तो वह स्वाभाविक होगी और कोई भी व्यक्ति या संगठन वह चाहे जितना शक्तिशाली हो, उसे रोक नहीं सकेगा। लेकिन सत्याग्रहकी भावना और उसकी कार्यप्रणालीको जहाँतक मैं समझता हूँ, श्रीयुत वल्लभभाईका तथा मेरा यह कर्त्तव्य है कि इस संघर्ष पर मूलतः जो मर्यादाएँ लगाई गई हैं, उन्हें सरकार द्वारा की जानेवाली उन भड़कानेवाली कार्रवाइयोंके बावजूद कायम रखा जाये जिनका स्वरूप आज भी ऐसा है कि यदि मूलतः निर्धारित सीमाओंका उल्लंघन किया जाये तो वह बिलकुल उचित होगा।

तथ्य है कि सत्याग्रह यह मानकर चलता है कि ईश्वर है और सत्याग्रही उससे मार्गदर्शन पाता है। नेता अपनी शक्ति पर नहीं, बल्कि ईश्वरकी शक्ति पर निर्भर करता है। उसके अन्दरकी आवाज उसे जैसा आदेश देती है, वह वैसा ही करता है। इसलिए जिसे व्यावहारिक राजनीति कहते हैं, वह चीज अक्सर उसके लिए अवास्तविकता होती है, यद्यपि अन्ततः उसकी अपनी नीति सबसे अधिक व्यावहारिक राजनीति साबित होती है। ऐसे आसार नजर आ रहे हैं कि भारतको आजतक जितने संघर्ष करने पड़े हैं यह संघर्ष उनमें सबसे अधिक कठिन होगा। इसलिए इस समय यह-सब कहना मूर्खतापूर्ण और कल्पनालोकमें विचरण करनेवालेकी बात-जैसा प्रतीत हो सकता है। लेकिन जो बात मुझे एक बहुत गम्भीर सत्य जान पड़ती है वह यदि न कहूँ तो अपने राष्ट्रके प्रति और स्वयं अपने प्रति झूठा साबित होऊँगा। यदि बारडोलीकी जनता वैसी ही है जैसी कि वल्लभभाई मानते हैं तो भले ही सरकार, उसके पास जो भी हथियार हैं, सबका उपयोग कर डाले, अन्तमें सब-कुछ ठीक ही होगा। तो अभी हम देखें कि क्या होता है। हाँ, विधान परिषद् के सदस्यगण तथा किसी तरह समझौतेके द्वारा मामलेको रफा-दफा कर देनेमें रुचि रखनेवाले