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पत्र: मीराबहनको

 

स्मरणीय है कि १९२३ में भारतीय व्यापारिक जहाजरानी कमेटीकी नियुक्ति की गई थी, जिसका उद्देश्य अन्य बातोंके अलावा "खुले हाथों आर्थिक सहायता आदि देकर" देशी जहाजरानीको प्रोत्साहन देनेके उपाय ढूंढ़ना था। उसने अनिच्छापूर्वक और जरूरतसे ज्यादा सावधानी बरतते हुए जो सिफारिशें कीं उनमें एक यह है कि तटीय माल-वहनको भारतीय जहाजोंके लिए सुरक्षित रखा जाये। अब श्रीयुत साराभाई हाजी दो विधेयक पेश करके उस कमेटीकी सिफारिशोंको कानूनी सत्ता दिलानेकी कोशिश कर रहे हैं। एक विधेयकका उद्देश्य हानिकर एकाधिकारोंकी समाप्ति है और दूसरेका उद्देश्य यह है कि पाँच वर्षोंमें, तटीय व्यापारके सिलसिलेमें जितने भी मालकी ढुलाई होती है, सबकी ढुलाईका काम प्रमुख रूप से भारतीय जहाज-मालिकोंको सौंप दिया जाये। दोनों विधेयक आवश्यक हैं और दोनों बिना किसी विलम्ब या कठिनाईके पास हो जाने चाहिए। मैं देशी उद्योग-व्यापारको संरक्षण देनेका प्रबल पक्षपाती हूँ। मैं मानता हूँ कि प्रत्येक देशको, और विशेषकर भारत जैसे गरीब देशको, जब उसके हितोंको खतरा हो तब इस बातका पूरा अधिकार है, बल्कि वास्तवमें उसका यह कर्त्तव्य है कि वह सुरक्षाके सभी वैध उपायोंसे उन्हें सुरक्षा प्रदान करे और उससे जो-कुछ अन्यायपूर्वक छीन लिया गया है उसे ऐसे उपायोंसे पुनः प्राप्त करे। वर्तमान प्रणालीके अधीन वैधानिक प्रयत्नों द्वारा कुछ ठोस चीज प्राप्त हो सकती है, इसमें मुझे पूरा सन्देह है। लेकिन कपड़ा मिलों-जैसे संगठित उद्योगोंके बारेमें मेरा रवैया वही है जो बराबर रहा है। वह यह है कि उन उद्योगोंको उनपर विदेशोंसे होनेवाले प्रहारोंसे बचाने के लिए या विदेशी स्पर्धासे मुक्त करानेके लिए – खास कर जब वह स्पर्धा विदेशी जहाजरानी और विदेशी वस्त्र उद्योग द्वारा की जा रही स्पर्धाकी तरह घोर रूपसे अन्यायपूर्ण हो – की गई सभी कार्रवाइयोंका मैं स्वागत और समर्थन करूँगा। इसलिए मैं कामना करता हूँ कि श्रीयुत साराभाई हाजीका यह प्रयत्न, जो आखिरकार बहुत नरम ढंगका ही प्रयत्न है, हर तरहसे सफल हो।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २-८-१९२८

 

१३३. पत्र: मीराबहनको

[२ अगस्त, १९२८][१]

प्रिय मीरा,

अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखना और इसके लिए जो जरूरी हो, उसे लेनेसे अपनेको रोकना मत। यदि रसोईघरके शोर-गुलसे परेशानी महसूस हो तो वहाँ जानेकी जरूरत नहीं। किसी भी हालतमें अपनी क्षमतासे बाहर कुछ न करना। ऐसा

 

  1. ऐसा जान पड़ता है कि यह पत्र २ अगस्तको गांधीजी के बारडाली पहुँचनेके तुरन्त बाद और बारडोलीके सम्बन्ध में समझौता वार्ता करनेके लिए ३ अगस्तको वल्लभभाई पटेलके पूना प्रस्थान करनेसे पूर्व लिखा गया था।