पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१५५

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१३५. पत्र: सन्तोक गांधीको

२ अगस्त, १९२८

चि॰ सन्तोक,

मैंने तुम्हें दुःख तो जरूर दिया है। किन्तु यह दुःख वैसा ही है जैसा कोई वैद्य देता है। मैं मंजुलाको दुःख पहुँचाते डरा इसलिए वह फिर बीमार पड़ गई। तुम्हें दुःख पहुँचाने में मुझे इतना सन्तोष तो है कि मैंने उसमें तुम सबका कल्याण ही चाहा है। मैं तुमसे शत-प्रतिशत पूर्णताकी आशा करता हूँ। माँ-बेटी दोनों चंगी होकर प्रफुल्लित मन वापस लौटना। मुझे पत्र लिखती रहना। केशु और राधाकी चिन्ता तो तुम्हें करनी ही नहीं चाहिए।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ८६७०) से ।

सौजन्य : राधाबहन चौधरी

 

१३६. पत्र: कुसुम देसाईको

बारडोली
२ अगस्त, १९२८

चि॰ कुसुम,

तुझे मैं क्या लिखूं? जिस तन्मयतासे तूने इतने दिन काम किया है उसी तन्मयतासे करती रहना। अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखना। मुझे तेरी डायरीकी आवश्यकता होगी – जिसमें सारे दिनका वर्णन हो, ऐसी। डाह्याभाईको प्रेमसे पालना-पोसना। मुझे उसमें असत्यकी प्रवृत्ति देखकर अतिशय दुःख हुआ है। पत्र नियमित रूपसे लिखती रहना, मैं उनकी राह देखता रहूँगा। पाठशाला और भोजनालय में अपने गुणोंकी सुवास फैलाना। डाहीबहनको तनिक भी ठेस नहीं पहुँचनी चाहिए।

यहाँके बारेमें इससे अधिक लिखने लायक आज कुछ भी नहीं है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ १७५५) की फोटो-नकलसे।