पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१५६

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१३७. पत्र : गंगाबहन वैद्यको

२ अगस्त, १९२८

चि॰ गंगाबहन,

तुमसे मिलनेकी आशा थी किन्तु तुम आ नहीं सकीं। तुम अपना काम कुछ हलका करना। सोनेका अनुकूल प्रबन्ध तो कर ही लिया होगा। थोड़ा-सा समय निकालकर मुझे प्रतिदिन अपनी मनोदशाका हाल लिखती रहना। सामर्थ्यसे अधिक न तो किसीसे काम लेना और न खुद करना। तुम जो-कुछ करना चाहो उसके सम्बन्धमें चि॰ छगनलालसे विचार-विमर्श कर लेना।

भोजनालपमें खूब शान्ति बनाये रखना। बहनोंको आवाज किये बिना काम करने की शक्ति प्राप्त करनी चाहिए।

बापूके आशीर्वाद

[गुजराती से]

बापुना पत्रो – ६: गं॰ स्व॰ गंगाबहेनने

 

१३८. पत्र: बनारसीदास चतुर्वेदीको

२ अगस्त, १९२८

भाई बनारसीदासजी,

आपका पत्र मीला है भाई ओझाको जो उत्तर[१] भेजा गया है योग्य है। तार भेजनेकी आवश्यकता नहिं है क्योंकि मैंने पहले एक तार भेजा हि था।

आपका,
मोहनदास

श्रीयुत बनारसीदास चतुर्वेदी
विशाल भारत कार्यालय
९१, अपर सर्कुलर रोड
कलकत्ता

जी॰ एन॰ २५६३ की फोटो-नकलसे।

 

  1. देखिए "पत्र: यू॰ के॰ ओझाको", १४-७-१९२८।