१४८. पत्र: भूपेन्द्रनाथ घोषको
स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८
आपके उस पत्रके लिए धन्यवाद, जिसके साथ 'यंग इंडिया' में प्रकाशित आश्रम नियमावलीमें सुधार करने के सुझाव संलग्न हैं। जब नियमोंमें सुधार किया जायेगा, तो इन पर सावधानीसे विचार किया जायगा।
हृदयसे आपका,
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९०७) की माइक्रोफिल्मसे।
१४९. पत्र: जी॰ रामचन्द्रन्को[१]
स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८
पिछले महीनेकी ८ तारीखका तुम्हारा पत्र मिल गया था। तुम्हें मुझे नियम-पूर्वक हर पखवाड़े एक पत्र अवश्य भेजना चाहिए। बहुत दिनोंसे बहुत सारे पत्र उत्तर देनेको पड़े हुए थे और अब उनका उत्तर इसीलिए दे पा रहा हूँ कि वल्लभ-भाईने मुझे बारडोली बुला लिया है, जिससे कुछ समय मिल गया है।
देवदास दिल्लीमें है। सुरेन्द्र अब एक कुशल चर्मशोधक बननेकी कोशिश कर रहा है। सामूहिक रसोईमें अब १५० आदमी खाते हैं। दूसरे लोगोंके अलावा बा, महादेव और प्यारेलाल बारडोली में हैं।
हृदयसे तुम्हारा,
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९०५) की माइक्रोफिल्मसे।
- ↑ यह पत्र भूपेन्द्रनाथ घोषके ९ जुलाई, १९२८ के पत्र (एस॰ एन॰ १३८७९) के उत्तरमें भेजा गया था। उस पत्र में यह सुझाव दिया गया था कि सत्याग्रह आश्रमको मित्रोंके दानपर नहीं चलना चाहिए, बल्कि उसे आत्मनिर्भर होना चाहिए।