पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१५०. पत्र: चौधरी मुखतारसिंहको

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला।[१]

यद्यपि आपके पत्रके अन्दर एक सचाई छिपी हुई है, फिर भी मुझे लगता है कि आपका विचार बहुत उलझा हुआ है। जबतक किसी देशकी जनता किसी उपयोगी धन्धेको अपनाकर मेहनती और स्वावलम्बी नहीं बन जाती तबतक वह विदेशी शासनके जुएको अपने कन्धोंसे नहीं उतार सकती। खुशहाली, मेहनत करके अपना भरण-पोषण करनेकी क्षमतासे बिलकुल अलग चीज है।

हृदयसे आपका,

चौधरी मुखतारसिंह[२]

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९०४) की माइक्रोफिल्मसे।

 

१५१. पत्र : डी॰ सी॰ राजगोपालाचारीको

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला।

यदि आपमें मनोबल है तो अपने मालिककी नाराजगीका खतरा उठाकर भी आप खादी पहनते रहेंगे। हमारा कर्त्तव्य इस ढंगसे काम करना है जिससे दूसरोंका नुकसान न हो। कर्त्तव्य एक ऋण है और ऋण चुकानेमें सिवाय आत्मतुष्टिके किसी प्रकारका पुरस्कार नहीं मिलता।

हम प्रार्थना इसलिए करते हैं कि हम अपने भीतर शक्तिका अनुभव करें और हमारा अन्तर शुद्ध हो।

श्रीयुत डी॰ सी॰ राजगोपालाचारी[३]
१७८३ कोरल ममेर स्ट्रीट, मद्रास

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९०३) की माइक्रोफिल्ससे।

 

  1. चौधरी मुखतारसिंहने १० जुलाई, १९२८ के अपने इस पत्र (एस॰ एन॰ १३८८०) में लिखा था कि "जिस देशपर विदेशियोंका शासन हो और उन विदेशियोंका उद्देश्य केवल सत्ता नहीं, बल्कि शासित देशका आर्थिक शोषण हो, उस देश में आर्थिक पुनकद्वारके लिए काम करना क्या समयकी बरबादी नहीं है?"
  2. मेरठके एक वकील; विधानसभा के सदस्य।
  3. एक अंग्रेजी पेढ़ी के कर्मचारी।