पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१६६

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१५२. पत्र : गिरवरधरको[१]

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

आपकी पुस्तिकाके[२] लिए धन्यवाद। पता नहीं, इसे पढ़नेका समय कभी मिल पायेगा या नहीं।

  1. इधर बिहारकी तरह महिलाओंके लिए खास आंगन नहीं होते।
  2. यद्यपि महिलाओंके लिए कोई खास आंगन या कमरा नहीं होता तो भी पुरुष आसानीसे महिलाओंके पास नहीं पहुँच सकते।
  3. सार्वजनिक सभाओंमें महिलाओंके बैठनेके लिए आम तौरपर अलग व्यवस्था कर दी जाती है।
  4. हाँ, बहुत-सी शिक्षित महिलाएँ शारीरिक श्रम नापसन्द करती हैं।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९०२) की माइक्रोफिल्मसे।

 

१५३. पत्र : विशनाथ तिक्कूको

स्वराज्य आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला।

यह कहना गलत है कि हम सभी लोगोंकी जरूरतके लायक हाथ-कते सूतका कपड़ा तैयार नहीं कर सकते। जिस क्षण लोगोंमें इच्छा उत्पन्न हो जायेगी, उसी

 

  1. समस्तीपुर (बिहार) के एक वकील, जिन्होंने अपने ३० जून, १९२८ के पत्र (एस॰ एन॰ १८८७२) में गांधीजीसे निम्नलिखित प्रश्न पूछे थे: "१. क्या वहाँ हमारे प्रान्तकी तरह हरएक हिन्दू परिवारमें महिलाओंके लिए कुछ कमरोंके साथ एक आँगन अलगसे सुरक्षित होता है? २. क्या वहाँ परिवारके पुरुषोंका कोई मित्र जनाने हलके में बेरोक-टोक प्रवेश कर सकता है? ३. क्या सार्वजनिक सभाओंमें सभी महिलाएँ साथ साथ बैठती हैं या पुरुषोंके साथ मिल-जुलकर बैठती है? ४. क्या वहाँ शिक्षित महिलाएँ घरमें शारीरिक श्रम करना — जैसे कि खाना पकाना आदि — नापसन्द करती हैं या वे पढ़-लिख लेनेके बाद भी अपना काम खुद करती हैं? क्या महिलाएँ मकान के बाहरी हिस्से में अपने परिवारके पुरुष-सदस्योंके साथ उनके इष्ट मित्रों और ग्राहक-मुवक्किलोंकी मौजूदगीमें उठती-बैठती हैं, या आवश्यकता पड़नेपर खास मौकोंपर ही बाहर आती हैं?" ऐसा मालूम होता है कि गांधीजी ने पांचवें प्रश्नका उत्तर नहीं दिया।
  2. यंग इंडिया हिन्दी, और नवजीवन में समीक्षार्थ भेजी गई पुस्तिका ग्राम-सुधार।