पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१६८

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१५५. पत्र: मथुराप्रसादको

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

मुझे खेद है कि आपके पत्रका उत्तर पहले नहीं दे सका।

आपने जिस विषयका उल्लेख किया है, उसके बारेमें मैं आपका मार्गप्रदर्शन करनेमें असमर्थ हूँ। हो सकता है, यदि आप कोशिश करें तो सरकारसे कुछ मदद मिल जाये।

मथुराप्रसाद
धमुआ (बिहार)

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९००) की माइक्रोफिल्मसे।

 

१५६. एक पत्र

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

उड़ीसासे आये पत्रोंके उत्तर मैं सिर्फ इसलिए नहीं दे सका हूँ कि इधर कामका बहुत ज्यादा दबाब रहा है। मेरी सारी योजनाएँ अस्तव्यस्त हो गईं, इसलिए आखिरी क्षणोंमें छगनलाल गांधीको आपके पास भेजनेका फैसला स्थगित करना पड़ा। आप उसे मेरे मनोनीत सदस्यके रूपमें अपने बोर्डमें रख सकते हैं और सारा पत्र-व्यवहार उसीके साथ कर सकते हैं। कह नहीं सकता कि उसे आपके पास कब भेज पाऊँगा। मुझे बारडोली बुला लिया गया है, इसलिए यह अनिश्चितता और बढ़ गयी है। सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ कि जब उसे भेजनेकी स्थितिमें होऊँगा तब भेजनेमें एक क्षणकी भी देर न करूंगा।

मेरी सलाह यह है कि आप छगनलाल गांधीकी मार्फत मुझसे सलाह किये बिना खादीके सम्बन्धमें कुछ न करें और अगर सरकार मुझे गिरफ्तार कर लेती है तो आप सीधे उसीसे सलाह लें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३९११) की माइक्रोफिल्मसे।