पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१६९

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१५७. पत्र: टी॰ के॰ माधवनको

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

प्रिय माधवन्,

आपका गत ३० मईका पत्र इतने महीनोंसे बिना उत्तर दिये मेरे पास पड़ा रहा, लेकिन मैं लाचार रहा। अब उसका उत्तर इसीलिए दे पा रहा हूँ कि मुझे बारडोली बुलाया गया है, जिससे अनुत्तरित पड़े इन पत्रोंको निबटानेका थोड़ा समय मिल गया है।

मुझे बताइएगा कि आपने कितनी प्रगति की है। अभीतक मैं फैसलेको नहीं पढ़ पाया हूँ आप खुद ही राजगोपालाचारीसे क्यों नहीं मिल लेते? वे जैसे भी आपकी सहायता कर सकते हैं, करेंगे। लेकिन मैंने सुना है, आजकल उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है।

हृदयसे आपका,

श्री टी॰ के॰ माधवन्
संगठन मन्त्री
श्री ना॰ घ॰ पा॰ योगम्[१]

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४०५४) की फोटो-नकलसे।

 

१५८. पत्र: अब्बास तैयबजीको

४ अगस्त, १९२८

प्रिय भुरर्र्[२],

यहाँ मेरे पसन्द या नापसन्द करनेकी कोई बात नहीं है। जब सब लोग जेलमें होंगे तो सारी चीजें अपनी ही गतिसे चलेंगी। मगर ज्यादा मिलने पर। रेहानाको बता दीजिए कि मैंने 'गोपीकी डायरी' को पढ़ना शुरू कर दिया था, मगर बारडोली आनेकी वजहसे उसे जारी न रख सका।

आपका,
मुरर्र्

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ ९५६४) की फोटो-नकलसे ।

 

  1. श्री नारायण गुरु धर्म परिपालन योगम्।
  2. गांधीजी और तैयबजी एक-दूसरेका इसी प्रकार अभिवादन किया करते थे।