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१६१. पत्र: कुसुम देसाईको

स्वराज आश्रम, बारडोली
४ अगस्त, १९२८

चि॰ कुसुम,

तुम्हारा पत्र मिल गया। मुझे दैनन्दिनी तो अवश्य चाहिए। तुम रोज लिखोगी तो आदत पड़ जायेगी। तुम्हें लिखना तो आता ही है। उस दिन किये हुए काम, मनमें उठनेवाले विचार और उस दिन हुए अपने अनुभव लिखने में कुछ बहुत योग्यता की आवश्यकता नहीं है।

बारडोलीके जो समाचार दे सकता हूँ वे मैंने छगनलाल (जोशी) के पत्रमें दिये हैं।

यह कहा जा सकता है कि फिलहाल मैं आराम ही ले रहा हूँ।

राजकिशोरीका[१] क्या हाल है?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ १७५६) की फोटो-नकलसे।

 

१६२. भाषण: सरभोंणमें

४ अगस्त, १९२८

कुछ प्रमुख स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ गांधीजी कल मोटरगाड़ीसे सरभोंण पहुँचे। वहाँ स्वराज आश्रम में उनसे मिलने के लिए सरभोंणके स्वयंसेवकों तथा अपने-अपने पदोंसे इस्तीफे दे देनेवाले पटेलों और तलाटियोंके अतिरिक्त सरभोंण इलाकेके २५ गाँवों के प्रतिनिधि भी आये थे। वहाँ आनेका उद्देश्य बताते हुए गांधीजी ने कहा कि मैं यहाँ सिर्फ आपको बधाई देने और आपकी सफलताओंके बारेमें कुछ और जाननेके लिए आया हूँ। तलाटियोंसे गांधीजी ने कहा:

मैं मानता हूँ कि इस संघर्षमें तलाटियोंने शेष सभी लोगोंसे अधिक साहस और बहादुरीका परिचय दिया है। क्या मैं यह आशा करूँ कि शान्ति स्थापित हो जाने पर भी आप वैसी ही शोभनीय भावना बनाये रखेंगे जैसी भावनाका परिचय आपने इस संघर्षके दौरान दिया है? यह इसलिए कह रहा हूँ कि मैंने देखा है, तलाटी लोग अक्सर गरीब ग्रामवासियोंको आतंकित और परेशान करते रहते हैं। अब यह तो आप ही पर निर्भर करता है कि आप उन्हें आश्वस्त कर दें ताकि वे आपसे डरनेके बजाय आपको अपना मित्र मानने लगें। बाकी बात यह है कि लोगोंने एकता और संगठन तथा सहयोगके मर्मको समझ लिया है ओर इस चीजको एक बार समझ लेनेके बाद तो विजय पाना बहुत आसान हो जाता है।

 

  1. बिहारकी एक बहन जो डॉ॰ राजेन्द्रप्रसादकी मार्फत आश्रम में शिक्षा लेने भाई थी।