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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

इसके बाद उन्होंने सरभोंग इलाकेके २५ गाँवोंके प्रतिनिधियोंसे बातचीत की। इन प्रतिनिधियों की संख्या लगभग साठ थी। उन्होंने बातचीत के दौरान कहा:

यद्यपि आपके नेता किसी सम्मानजनक समझौतेके मार्गमें कभी भी बाधक नहीं होंगे, लेकिन किसी अपमानजनक समझौतेको वे कभी स्वीकार न करेंगे। हम सब शान्तिके लिए बड़े उत्सुक हैं, लेकिन हम सम्मानके साथ शान्ति चाहते हैं – ऐसी शान्ति जो सत्याग्रहियों और वे जिस उद्देश्यको लेकर चल रहे हैं उसके योग्य हो। अभी पिछले ही दिनों बाजीपुराके कुछ प्रतिनिधियोंने वल्लभभाईसे कहा कि उन्होंने अपना सब-कुछ उनको समर्पित कर दिया है, लेकिन अपना सम्मान नहीं।[१] तो आपको मेरी यही सलाह है कि आप लोग अपना सम्मान किसीके हाथमें न सौंपें। और जहाँतक वल्लभभाईकी बात है, वे तो आपसे कभी भी वैसा करनेको कह ही नहीं सकते। क्योंकि उन्हें खुद अपना सम्मान बहुत प्यारा है और जितना प्यारा उन्हें अपना सम्मान है उतना ही दूसरोंका भी। यदि कोई अपना सम्मान छोड़नेको तैयार न हो तो दूसरा कोई भी आदमी उससे उसका सम्मान नहीं छीन सकता। ऐसा समय आ सकता है जब डॉ॰ सुमन्त[२], अब्बास तैयबजी और दूसरे सभी स्थानीय कार्यकर्त्ता और स्वयंसेवक आपसे छीन लिये जायें और जेलोंमें बन्द कर दिये जायें। तब आपकी असली परीक्षाका समय आयेगा। जब वह घड़ी आये तो आप सभी अपने सम्मानकी रक्षा अन्तिम साँस तक करें, क्योंकि स्वराज्यका मर्म यही है। गोरी नौकरशाहीके स्थान पर रंगदार नौकरशाहीको प्रतिष्ठित कर देनेसे स्वराज्य नहीं आ जायेगा। वह तो तभी आयेगा जब हम अपने सम्मानकी रक्षा करनेकी शक्ति प्राप्त कर लेंगे। और यदि आप सत्य और अहिंसाको अपनी ढाल बना लें तो मैं सच कहता हूँ कि इस संघर्षका परिणाम चाहे जो हो, आप अपने सम्मानको पूरी तरह बचा ले जायेंगे। सरकार चाहे गोलियोंसे आपको छलनी कर दे या आपको अपने घरोंसे निकाल बाहर करे, आपको दोनोंको बरदाश्त करनेको तैयार रहना चाहिए। हाँ, उस बातको याद रखिए जो वल्लभभाईने आपसे कही थी – सिपाही गोलियोंको अपनी पीठ पर नहीं, अपनी छाती पर झेलता है।

और जहाँतक आपके अपने घरबारसे वंचित कर दिये जानेकी बात है, जबतक मेहनत करनेके लिए आपके हाथ-पैर सही-सलामत हैं तबतक आपको चिन्ता करनेकी क्या जरूरत है? आखिरकार आपको सरकार तो हर रोज रोटी नहीं देती। वह तो वही देता है जो सबके ऊपर बैठा सब-कुछ देख रहा है। आप पहले ही बहुत-कुछ पा चुके हैं और यदि आपने दृढतापूर्वक आखिरी आँचको सह लिया तो दुनिया भरमें आपके पराक्रमका डंका बजने लगेगा। लेकिन, यदि आप उस निर्णयात्मक परीक्षामें विफल रहे तो आपका पतन भी वैसा ही जबरदस्त होगा जैसी भारी विजय आपको अभी मिली है। इसी तरह १९२२में आप सफलताके द्वार तक पहुँच गये थे, लेकिन आप अपनी टेक पर कायम नहीं रह सके और नतीजा यह हुआ कि आप फिर उसी

 

  1. देखिए "बातचीत: बारडोलीमें", २-८-१९२८।
  2. सुमन्त मेहता।