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मगनकाका

दलदलमें जा गिरे और जबतक वल्लभभाईने अपनी तपश्चर्या और बलिदानके बल पर आपको पुनः उस पुरानी ऊँचाई तक नहीं उठाया तबतक उसी अवस्थामें पड़े रहे। उन्होंने तो अपना काम कर दिया है, अब आपको अपना काम कर दिखाना शेष है।

[अंग्रेजी से]

बॉम्बे क्रॉनिकल, ७-८-१९२८

 

१६३. पत्र : मणिबहन पटेलको

स्वराज आश्रम, बारडोली
शनिवार, ४ अगस्त, १९२८

चि॰ मणि,

स्वामी[१] तो यहाँ नहीं है। परन्तु तुम्हारा उनके नाम लिखा हुआ पत्र मैने पढ़ा। आनेका हठ करनेकी जरूरत नहीं। सिपाहीका धर्म अपना शरीर ठीक रखना और सरदार कहे सो सानन्द स्वीकार करना है। तबीयत तो जल्दी ही अच्छी हो जायेगी, यदि अच्छी बनानेमें मन लगाया जाये।

बापू[२] और महादेव तथा स्वामी पूनामें हैं। आज वहाँसे चले होंगे। पूनासे तार आना तो चाहिए था, पर नहीं आया। समझौता होगा या नहीं, यह अभी नहीं कहा जा सकता। मुझे लगता है कि अब सरकारमें लड़नेकी शक्ति नहीं है। लोकमत उसके बहुत विरुद्ध है और उससे बहुत भूलें हुई हैं। आज सरभोंण हो आया। आजकल बरसात नहीं है। आज बहुत से लोग तो सूरत जा रहे हैं।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]

बापुना पत्रो – ४: मणिबहेन पटेलने

१६४. मगनकाका

इस शीर्षकसे प्रभुदास गांधीने स्वर्गीय मगनलाल गांधीके जीवनकी सुन्दर, विस्तीर्ण किन्तु छोटी-सी जीवनी[३] लिखी है। उसमें सत्य है, भाषा पर काबू है और सत्य तथा सरल भाषाका मेल है, अतः मेरा मन्तव्य है कि उस वृतान्तके कलाकी दृष्टिसे भी शोभनीय माने जानेकी सम्भावना है। मगनलाल गांधीके जीवनसे सभी लोगोंको बहुत-कुछ सीखनेको मिलता है और उनका जीवन 'जैसी कथनी वैसी करनी' का नमूना था। इसीसे यह वृतान्त गुजराती भाषा जाननेवालों को अवश्य लाभप्रद होगा, यह समझकर उसे यहाँ स्थान दिया गया है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ५-८-१९२८

 

  1. आनन्दानन्द।
  2. मणिबहन पटेलके पिता, वल्लभभाई।
  3. यहां नहीं दी जा रही है।