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१६७. पत्र: मीराबहनको

स्वराज आश्रम, बारडोली
[५ अगस्त, १९२८][१]

प्रिय मीरा,

तुम्हारे पत्र मिले। रसोई घरके शोर-गुलको बन्द करनेके लिए मैं तुम्हारे नामका खूब इस्तेमाल कर रहा हूँ। यदि इससे तुम कुछ समयके लिए कुछ-एक बहनोंकी थोड़ी-बहुत नाराजगीकी भागी बनती हो तो उसमें कोई हर्ज नहीं है। इस सवालपर तुम्हें उनसे खुलकर बातें करनी चाहिए।

छोटेलालजीका कहना है कि मासिक धर्म सम्बन्धी नियमोंसे तुम्हें बहुत ज्यादा चिढ़ है। वे कहते हैं कि उन नियमोंके बारेमें तुम कुछ जानती ही नहीं। क्या बात ऐसी ही है? मेरा तो खयाल था कि इस विषय पर हम लोग चर्चा कर चुके हैं[२] और तुमने यह मान भी लिया था कि इस सम्बन्धमें जिन लोगोंके कुछ खास आग्रह हैं उन्हें सन्तुष्ट करनेके लिए यह जरूरी है। तुम इस विषय पर छोटेलालजी से बात करके मुझे बताओ कि तुमने क्या-कुछ समझा है।

यह निश्चित-सा ही है कि 'कल या मंगलवारको' समझौतेकी घोषणा हो जायेगी। लेकिन, इससे जो नई परिस्थितियाँ बनेंगी, उनके स्थिर हो जाने तक मुझे कुछ और दिन यहाँ रुकना पड़ेगा।

सस्नेह

बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३०४) तथा जी॰ एन॰ ८१९४ से भी।

सौजन्य: मीराबहन

 

  1. बारडोलो-समस्थाके सम्बन्धमें समझौतेकी घोषणाके उल्लेखसे।
  2. देखिए खण्ड ३४, पृष्ठ ३७२-७४ और ४३४-३९।