पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१७७

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१६८. पत्र: वसुमती पण्डितको

बारडोली
रविवार, ५ अगस्त, १९२८

चि॰ वसुमती,

आज तुम्हारी कोई खबर ही नहीं मिली। मैं कल तार देकर तुम्हारे हालचाल पूछनेवाला हूँ। यदि किसीकी मददकी जरूरत हो तो मुझे लिखने में जरा भी संकोच न करना। तुम्हारी तबीयत बिगड़नी नहीं चाहिए। एक महीने खाटमें पड़े रहनेकी बात मेरी समझमें नहीं आती। चनेके पानीकी बात भी मेरी समझमें नहीं आती।

बहुत करके बारडोली-समस्याका समाधान हो जायेगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४९०) से।

सौजन्य: वसुमती पण्डित

 

१६९. पत्र: कुसुम देसाईको

बारडोली
रविवार, ५ अगस्त, १९२८

चि॰ कुसुम,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे सिरमें दर्द हुआ। यह अजीब बात है। जरा ध्यान रखना।

. . . भाई[१] अपनी गलती स्वीकार क्यों नहीं करता, इस बारेमें सोचना और यदि कुछ कहना चाहो तो लिखना। ऐसा तो नहीं है कि कहीं तुम्हारे सुननेमें कुछ भूल हुई हो? मैंने तो . . . .भाईको[१] मुक्त कर देनेको ही पुनः लिखा है। लिखना बाल-मन्दिरकी कैसी और क्या व्यवस्था हुई है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ १७५७) की फोटो-नकलसे ।

 

  1. १.० १.१ साधन सूत्र में से नाम निकाल दिये गये हैं।