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१७०. भाषण: अनुशासनके सम्बन्धमें, रायममें[१]

५ अगस्त, १९२८

सरदारका आदेश स्पष्ट है, इसलिए मैं यहाँकी परिस्थितिके विषय में कुछ बोल नहीं सकता। यदि वे यहाँ होते और उन्होंने मुझसे बोलने को कहा होता तो मैं जरूर बोलता। लेकिन आज तो मैं आपकी बहादुरी और एकता पर आपको बधाई देनेके अलावा और कुछ नहीं कह सकता। कताईका प्रदर्शन देखकर मुझे बहुत खुशी हुई, लेकिन मैं चरखेके विषयमें भी नहीं बोल सकता। हमारा यह सिद्धान्त होना चाहिए कि जिसे हमने अपना सरदार चुन लिया है उसके आदेशों या हिदायतोंका हम पूरा-पूरा पालन करें। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि मैं वल्लभभाईका बड़ा भाई हूँ, लेकिन सार्वजनिक जीवनमें जो जिस व्यक्तिके अधीन काम करता है, उसका वह पिता हो या बड़ा भाई, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे तो उसकी हिदायतोंके मुताबिक चलना है। यह कोई नया नियम नहीं है। प्राचीन कालमें भी यही नियम चलता था। यह वही अनुशासन था जिसको ध्यान में रखकर महाप्रतापी कृष्णने विनयपूर्वक अर्जुनके सारथीका काम किया और राजा युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें सबसे छोटे सेवकका काम किया। इसलिए मैं आपको बधाई देनेके अलावा और कुछ नहीं कर सकता। जिस व्यक्तिने आपको भारत-भरमें प्रसिद्ध बनाया, वह वल्लभभाई ही हैं। लेकिन आपको सारी दुनियामें प्रसिद्ध बना देनेवाली तो यह सरकार ही है। भगवान् करे, भविष्य में आप इससे भी बड़े काम कर दिखायें।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ९-८-१९२८

 

१७१. तार: जमनालाल बजाजको

बारडोली
६ अगस्त, १९२८

जमनालालजी
मार्फत 'प्रताप', कानपुर
कार्य लगभग समाप्त। सन्तोषजनक। अभी यहीं ठहरूँगा।

बापू

[अंग्रेजीसे]

पाँचवें पुत्रको बापूके आशीर्वाद

 

  1. महादेवभाईके "बारडोली सप्ताह-दर-सप्ताह" शीर्षक लेखसे।