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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जरूरी मालूम होता है कि तुम उसका सारा काम-काज अपने हाथमें ले लो। तुम चाहो सो मदद तुम्हें दी जाये। मगर वह तभी हो सकता है, जब तुममें हिम्मत आ जाये। भोजनालय और भण्डारमें शोर-गुल मिट जाना चाहिए। इस शोर-गुलसे मीराबहनके लिए काम करना मुश्किल हो जाता है और छोटेलालजी भी घबरा जाते हैं। स्थितप्रज्ञके श्लोक गानेवाले को शान्तिपूर्वक काम करनेकी आदत डालनी ही चाहिए। रोटी बेलते या चावल साफ करते वक्त हम अपने काममें अन्तर्मुख होकर तन्मय क्यों नहीं रह सकते? मगर तुम तो कहती हो कि बातें न की जायें तो वक्त ही न कटे। यह सुनकर मैं मजबूर हो जाता हूँ। परन्तु मुझे यह तो कहना ही पड़ेगा कि तो भी तुम्हें शोर करनेकी जरूरत नहीं है। उस समय दिनमें सीखे हुए कुछ श्लोकोंके विचारमें ही मग्न क्यों न रहा जाये? देखो और विचारो। जो ठीक लगे वही करना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ ३६८१) की फोटो-नकलसे।

 

१७४. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको

स्वराज आश्रम, बारडोली
६ अगस्त, १९२८

सुज्ञ भाईश्री,

तुम्हारा पत्र मिला। क्या तुम्हें इसके लिए धन्यवाद दूँ?

मेरे बारेमें किसीको चिन्ता होनी ही नहीं चाहिए। ईश्वरको जब तक इस शरीरसे काम लेना होगा तब तक अपनी गरजसे वह मुझे ठीक रखेगा और जिस दिन वह रूठ जायेगा उस दिन हजारों वैद्य-हकीम भी काम नहीं आयेंगे। किन्तु फिलहाल ऐसा जान पड़ता हैं कि समझौता हो ही जायेगा।

लेकिन वल्लभभाई चाहते हैं कि मैं थोड़े दिन और यहीं रहूँ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[पुनश्च:]

आश्रम में आनेके बारेमें चिन्तित मत होना। यदि आनेका समय निकाल सको, तो निःसन्देह अच्छा होगा।

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ३२२४) से।

सौजन्य: महेश पट्टणी