पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१८४

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१८१. पत्र: मीराबहनको

स्वराज आश्रम, बारडोली
७ अगस्त, १९२८

प्रिय मीरा,

मैंने तुम्हें तार नहीं किया, क्योंकि समझौतेका समाचार अखबारों में प्रकाशित हो चुका है। जब तक वहाँ लौट नहीं आता हूँ, तब तक मैं मासिक धर्मकी अवधिमें बरती जानेवाली अस्पृश्यताके सवालको लेकर कोई चिन्ता नहीं करूंगा। मैं उस दोषको जानता हूँ, जिसकी ओर तुमने मेरा ध्यान आकर्षित किया है। यदि आश्रम के प्रमुख लोग दृढ़ होंगे तो वहाँ सब-कुछ अपने-आप ठीक हो जायेगा।

सस्नेह।

बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३०६) तथा जी॰ एन॰ ८१९६ से भी।

सौजन्य: मीराबहन

 

१८२. पत्र: कुसुम देसाईको

बारडोली
मंगलवार, ७ अगस्त, १९२८

चि॰ कुसुम,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें समझने में मुझे कठिनाई होती है। तुम मुझे विनयकी भाषा तो हरगिज नहीं लिखोगी। तुम्हें डायरी लिखना नहीं आता यह कहना ठीक नहीं है।[१] तुम्हारा यह कहना भी थोथी विनय-भर है कि पत्र लम्बा हो गया है और संक्षेपमें लिखना नहीं आता। तुम्हारे सभी पत्र सरस हैं और उन्हें मैं भी संक्षिप्त नहीं कर सकता तथा संक्षिप्त और विस्तृत पत्रका भेद मैं भली-भाँति जानता हूँ। अतः यदि वास्तव में तुम्हारा यही विश्वास हो तो उसे अपने मनसे निकाल देना। और यदि तुम विनयकी खातिर आत्मनिन्दा करती हो तो ऐसी निन्दा करना बन्द कर देना।

. . .भाईके[२] बारेमें अब फैसला हो गया लगता है। जान पड़ता है. . . भाईने[२] अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। यह स्वीकृति फिलहाल सीधी मुझ तक नहीं पहुँच सकी किन्तु ऐसा लगता है कि सुरेन्द्र और छोटेलालके सामने उन्होंने स्वीकार कर लिया है। तुमने इस मामलेमें जिस ढंगसे भाग लिया वह निश्चय ही बहुत अच्छा रहा।

 

  1. देखिए "पत्र: कुसुम देसाईको", ४-८-१९२८।
  2. २.० २.१ साधन-सूत्रमें से नाम निकाल दिये गये हैं।