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१८६. पत्र: कुसुम देसाईको

स्वराज आश्रम, बारडोली
बुधवार, ८ अगस्त, १९२८

चि॰ कुसुम,

शारदाको तूने जवाब दिया वह सचोट तो है ही, उसमें गहरा अर्थ भी है।

मेरा जवाब यह है। लाड़ली कौन है या कौन नहीं, यह मैं नहीं जानता, परन्तु लड़कियाँ खुद जानती हैं। परन्तु मैं जिसे लिखना जरूरी समझता हूँ उसे लिखता हूँ अथवा जो आशा रखे उसे लिखनेका प्रयत्न करता हूँ। यह शारदाको पढ़वाना और वह आशा रखे तो मुझे लिखे।

स्त्री-विभागमें चोरी होती है तो चोरको ढूँढ निकालनेकी शक्ति तुम लोगोंमें होनी चाहिए। क्या चुराया, यह मुझे लिखना चाहिए था।

जिस-जिसकी जो-जो चीज चली गई हो, उसकी सूची मुझे भेजो। यह भी बताओ कि शक किस-किस पर है।

कदाचित् वहाँ रविवारको पहुँचूँ, अथवा अगले सप्ताहके शुरू में तो किसी दिन जरूर।

बापूके आशीर्वाद

आश्रम में रतिराम है। उसके दाँत खराब हो गये हैं। उसे भड़ौंचमें जिसके नाम पत्र देना जरूरी हो उसके नाम पत्र देना। वह वहाँ जाये और दाँत दिखाकर दवा ले आये। जहाँतक हो सके, डाक्टर उसे रुकनेको न कहे, वह जिसके पास जाये यह उसे लिख देना। डाक्टरको लिखना कि क्या रोग है, यह तुझे लिखे। और उपचारके बारेमें रतिरामसे कहे, फिर भी तुझे तो लिखे ही।

बापू

गुजराती (जी॰ एन॰ १७६०) की फोटो-नकलसे तथा बापुना पत्रो — ३: कुसुमबहेन देसाईने से भी।