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१८७. सब भला

यह हार्दिक प्रसन्नताकी बात है कि अन्ततः बारडोली सत्याग्रह के विषय में समझौता हो गया है[१]। अन्त भला तो सब भला। मैं बम्बई सरकार और बारडोली तथा वालोदकी जनता, दोनोंको बधाई देता हूँ, और श्रीयुत वल्लभभाईको भी, जिनकी दृढ़ता और साथ ही विनम्रता के बिना समझौता असम्भव था। पाठक देखेंगे कि सत्याग्रहियों को लगभग वह सब मिल गया है जो उन्होंने माँगा था। जाँच-समितिके विचारार्थ सौंपे गये विषय सब अभीष्ट प्रकारके हैं। यह सच है कि लगान वसूल करनेके लिए सरकार द्वारा की गई जोर-जबरदस्तीसे सम्बन्धित आरोपोंकी जाँच नहीं होनेवाली है। लेकिन, यह शर्त हटाकर श्रीयुत वल्लभभाईने उदारता ही दिखाई है, क्योंकि नीलाम की गई जमीनके साथ-साथ जब्त की गई सारी जमीन सम्बन्धित किसानोंको वापस दे दी जानेवाली है, तलाटी लोग फिरसे बहाल कर दिये जानेवाले हैं और अन्य छोटे-मोटे मामलोंका भी निबटारा करना तय हुआ है। यह अच्छा ही है कि पुराने अन्यायोंका सवाल फिरसे न उठाया जाये। सिवाय इसके कि इनके लिए क्षतिपूर्ति कर दी जाये, इनका और क्या इलाज है? जोर-जबरदस्तीके तरीकोंसे सम्बन्धित माँगको हटा लेनेके कारण लगान-निर्धारणके सवालकी जाँच ज्यादा शान्त वातावरणमें की जा सकेगी।

सत्याग्रहियोंको जो विजय मिली है, उसके वे सुयोग्य पात्र थे। लेकिन उन्हें अपनी इस विजयसे निश्चिंत होकर बैठ नहीं जाना चाहिए। उन्हें लगान निर्धारण-सम्बन्धी अपने आरोपोंको सिद्ध करनेके लिए सामग्री इकट्ठा करना और उन्हें सुविन्यस्त ढंगसे एक साथ जमाना है।

और सबसे बड़ी बात तो यह है कि यदि उन्हें अपनी स्थितिको सुदृढ़ बनाना है तो उन्हें दूनी शक्तिसे रचनात्मक कार्य करने में जुट जाना जाहिए। यह रचनात्मक कार्य बहुत कठिन और धीरे-धीरे सम्पन्न होनेवाला काम है और साथ ही इसमें किसी प्रकारके दिखावेकी भी गुंजाइश नहीं है; किन्तु उनकी शक्तिका असली स्रोत इसे सम्पन्न करनेकी उनकी क्षमतामें ही है। उन्हें अपने बीचसे अनेक सामाजिक बुराइयोंको दूर करना है। चरखेकी ओर ध्यान देकर उन्हें अपनी आर्थिक स्थितिको अच्छा बनाना है। चरखेके कारण ही उनमें जागृति आई। उन्हें अपने बीचसे मद्यपानके कलंकको मिटा देना है। उन्हें गाँवोंकी सफाईकी ओर ध्यान देना है और प्रत्येक गाँवमें एक सुसंचालित स्कूलकी व्यवस्था करनी है। तथाकथित उच्च वर्गोंके लोगोंको पिछड़े और दलित वर्गोंके साथ मैत्रीका सम्बन्ध कायम करना है। अभी उन्हें जो संकट झेलना पड़ा, ऐसे संकट झेलनेकी उनकी क्षमता, वे इन मामलोंपर जितना अधिक ध्यान देंगे, उतनी ही अधिक बढ़ेगी।

 

  1. पूनामें ६ अगस्त, १९२८ को; समझौतेकी शर्तोंके लिए देखिए परिशिष्ट-२।