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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो तो, गलतियोंसे बचनेके लिए पूरी कोशिशके बावजूद, कुछ-न-कुछ छूट रह जाना अक्सर अनिवार्य हो जाता है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ९-८-१९२८

 

१८९. पत्र: वसुमती पण्डितको

९ अगस्त, १९२८

चि॰ वसुमती,

तुम्हारा विस्तृत पत्र आज मिला। अभी ऐसा नहीं लगता कि तुम्हें बीमारीसे पूरी तरह मुक्ति मिल गई है। अगर किसीको यहाँसे बुलानेकी आवश्यकता समझो तो लिखना। ऐसा लगता है कि मैं रविवारको बारडोलीसे रवाना हो जाऊँगा।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

यदि तुम्हें अपने केश मुसीबत जान पड़ते हों तो उन्हें कटवा देने में तनिक भी संकोच मत करना।

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४९३) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: वसुमती पण्डित

 

१९०. पत्र: मीराबहनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती[१]
१० अगस्त, १९२८

चि॰ मीरा,

इस सप्ताहके अंत तक बारडोलीसे रवाना होने की आशा करता हूँ। फिलहाल सबसे अच्छा यही रहेगा कि तुम्हारा खाना तुम्हें अपने कमरेमें ही मिल जाया करे और तुम रसोईघरसे कोई वास्ता न रखो। तुमने जो दलील दी है, उस पर मुझे बहुत कुछ कहना है। लेकिन चूँकि मैं सोमवारको आश्रम पहुँच जानेकी आशा करता हूँ, इसलिए अपनी बात पत्रोंमें नहीं कहना चाहता। तुम्हें जो स्थिति अपनानेकी जरूरत महसूस हो रही है, उसको लेकर मैं जरा भी परेशान नहीं हूँ।

यहाँ स्वराज आश्रममें एक बहुत ही बहादुर लड़कीकी मृत्यु हो गई। कल वह बिलकुल ठीक थी और अपने पितासे मिलने आई थी जो अभी साबरमती जेलमें हैं और जल्दी ही छूटनेवाले हैं। उसके पेटमें भयंकर दर्द शुरू हो गया। डाक्टर लोग मर्जका पता नहीं लगा सके। आज सुबह-सुबह उसने बहुत शान्तिपूर्वक शरीर त्याग

 

  1. स्थायी पता।