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पत्र: रॉबर्ट फ्रेजरको

दिया।[१] और इसलिए यद्यपि मैं आजका काम-काज यन्त्रवत् किये जा रहा हूँ, किन्तु मृत्युके देवतासे मेरा मूक संलाप चल रहा है और मृत्युका अर्थ मेरे सामने अधिकाधिक स्पष्ट होता जा रहा है।

शेष मिलने पर।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३०८) तथा जी॰ एन॰ ८१९८ से भी।

सौजन्य: मीराबहन

 

१९१. पत्र: रॉबर्ट फेजरको

बारडोली
१० अगस्त, १९२८

आपका पत्र[२] मिला। डॉ॰ विधान रायने उसके मजमूनके बारेमें मुझे लिखा था। मेरा खयाल है आपको उसका एक जवाब भी मिल गया है।

शुरूसे आखिर तक सारी कहानी मनगढ़न्त है। पत्रमें उल्लिखित लोगोंके बारेमें मैं कुछ नहीं जानता।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४८७) की फोटो-नकलसे।

 

  1. इस घटनाका वर्णन करते हुए महादेवभाईने लिखा था कि "वह वकानेरसे बिलकुल पैदल चलकर आई थी। . . . सुबह तीन बजे उसने कहा, 'कृपया महारमाजी को बुलवा दीजिए। मैं उनके अन्तिम दर्शन करना चाहती हूँ।' गांधीजी तुरन्त वहाँ आ गये। उसकी आँखोकी ज्योति समाप्त हो चुकी थी, लेकिन ज्यों ही गांधीजी ने उसे सम्बोधित किया, उसने कहा: 'मैं आपको देख नहीं सकती, लेकिन आपकी आवाज पहचानती हूँ। क्या कोई मेरे हाथ साथ जोड़ देगा? मैं गांधीजी को अन्तिम बार नमस्कार करना चाहती हूँ।' इसके बाद उसने बल्लभभाई को बुलाने को कहा और दिन निकलनेसे पहले ही चल बसी।" (द स्टोरी ऑफ बारडोली, पृष्ठ १४०-१)।
  2. २ अगस्त, १९२८ के अपने इस पत्र में फ्रेजरने लिखा था: "आपको सूचित करना चाहता हूँ कि हालमें एस्टेल कूपर गांधीने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपतिको निम्नलिखित तार मेजा है: 'महात्मा गांधीने मुझे आपको यह सूचित करने को कहा है कि नाजिमोवाके कारण उनके सामने सम्पूर्ण अमेरिकी मालके बहिष्कार की घोषणा करने और जहाँ रंगदार लोग काम करते हैं, ऐसे तमाम अमेरिकी बागानों में आम हड़ताल करानेके अलावा और कोई रास्ता नहीं रह गया है। बहिष्कार तभी बन्द किया जायेगा जब नाजिमोवाको देश-निकाल दे दिया जाये और कैथीरिन मेयोको अपने अपलेखकी सजा भुगतनेके लिए यहाँ भेज दिया जाये।' बड़ी कृपा होगी, यदि आप यह बता सकें कि यह एस्टेल कूपर गांधी कौन है और उक्त तार आपकी जानकारीमें और आपकी सहमतिसे भेजा गया था या नहीं। इस मामलेके सम्बन्ध में यदि आपको कोई टिप्पणी करनी हो तो वैसी टिप्पगी भी करके भेजिए। उसे प्राप्त करके मुझे खुशी होगी।" देखिए "पत्र: डॉ. वि॰ च॰ रायको", ३-८-१९२८।