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१९४. पत्र: ऑलिव डोकको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती[१]
११ अगस्त, १९२८

प्रिय ऑलिव,[२]

तुम्हारा वह पत्र मिला जिसमें तुमने अपना समाचार और अपने बहादुरी-भरे अद्भुत कार्यके बारेमें लिखा है। इसके लिए धन्यवाद। क्लीमेंट[३] और कॉम्बरका हाल[३] बतानेके लिए भी धन्यवाद।

तुमने मुझे अपने लड़कोंके बारेमें कुछ बतानेको लिखा है। सबसे बड़ा लड़का हरिलाल तो विद्रोही हो गया है। वह पीने तक लगा है और मौज-मजेकी जिन्दगी बिताता है और हृदयसे ऐसा मानता है कि मैं जो-कुछ कर रहा हूँ वह एक पथभ्रष्ट आदमीका काम है। मणिलाल फीनिक्समें 'इंडियन ओपिनियन' की देख-रेख करता है। उसका विवाह दो साल पहले हुआ था और अपनी पत्नीको भी वह साथ ले गया। दोनों सुखी हैं। रामदास और देवदास मेरे साथ हैं और मेरे काममें हाथ बँटाते हैं। रामदासका विवाह हुए साल-भर हुआ है। देवदास अभी तक अविवाहित है। यहाँ मैं एक खासी बड़ी संस्था चला रहा हूँ। साथके कागजमें संविधान और उसका गठन किस प्रकार किया गया है, यह देख सकती हो।

जब अपने परिवारके विभिन्न सदस्योंको पत्र लिखो तो सबसे मेरा स्नेहाभिवादन कहना।

सस्नेह,

हृदयसे तुम्हारा,
मो॰ क॰ गांधी

कुमारी ऑलिव सी॰ डोक
काफुलाफुटा, डाकघर नौला
उ॰ प॰ रोडेशिया (दक्षिण आफ्रिका)

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ९२२६) से।

सौजन्य: सी॰ एम॰ डोक

 

  1. स्थायी पता।
  2. रेवरेंड जे॰ जे॰ डोकी पुत्री।
  3. ३.० ३.१ ऑलिव डोकके भाई।