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निर्बलके बल राम

 

इस जीतका यश व्यावहारिक दृष्टिसे चाहे जिसे दें, किसी सत्याग्रही और वल्लभभाईकी दृष्टिसे तो यह यश केवल ईश्वरको ही दिया जा सकता है। वल्लभभाईने भी यह यश ईश्वरको ही दिया है। सत्याग्रही ईश्वरको सर्वार्पण करके ही युद्धमें उतरता है इसलिए यश-अपयशका भागी वह नहीं रहता। लौकिक दृष्टिसे सत्याग्रही निर्बल दिखाई देता है, उसके पास शरीरबल नहीं होता, इसलिए उसके पास शस्त्र भी नहीं हो सकता। कहाँ बारडोलीके लोग और कहाँ ब्रिटिश साम्राज्य? एक चींटी और दूसरा हाथी। किन्तु जब सत्याग्रही चींटी-जैसा बन जाता है, तब ईश्वर उसे हाथीके पैरके नीचे आई हुई चींटीकी तरह बचा लेता है। यही वारडोलीके सत्याग्रहियोंके विषयमें हुआ है।

इस प्रकार हम पहले ईश्वरको धन्यवाद दें और फिर आगे बढ़ें।

यदि माननीय गवर्नर निश्चय न करते तो समझौता नहीं हो सकता था। अपने तीखे भाषणके अनुरूप व्यवहार न करते हुए उन्होंने शान्त नीति ग्रहण करके सत्याग्रहियोंकी माँग स्वीकार की। इसके लिए वे धन्यवादके पात्र हैं।

किन्तु यदि वल्लभभाई पटेल उदार न बनते तो समझौता सम्भव ही न था। बाजी उनके हाथ में थी। लगान वसूल करते समय राज्यने जो निरंकुश व्यवहार किया था उसकी जाँचका आग्रह करनेका अधिकार उन्हें था; पर उन्होंने वह आग्रह छोड़ दिया। दूसरी कई छोटी-मोटी बातोंके बारेमें वे न्यायकी दृष्टि रखकर अड़ सकते थे; किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। अपने पदका आग्रह न करना तो उनका सबसे बड़ा त्याग है। उन्होंने अपना विचार ही नहीं किया। सरकारी तौरपर बल्लभभाईको समझौतेकी अभीतक कोई खबर नहीं दी गई है। समझौता हो गया है, यह बात उन्हें मित्रोंके पत्रों तथा समाचारपत्रोंमें प्रकाशित समाचारोंसे मालूम हुई है। पर उन्हें तो आम खानेसे मतलब है, गुठलियाँ गिननेसे नहीं, इसलिए वे मानापमानके विषयमें उदासीन रह सकते हैं। सत्याग्रहीको अपने व्यक्तिगत सम्मानकी चिन्ता नहीं होती। अगर किसी समय वह मानका आग्रह करता हुआ दिखाई दे तो अन्य लोगोंके मानकी खातिर। इसलिए जिस प्रकार वल्लभभाई पटेलके बिना संघर्ष नहीं हो सकता था उसी प्रकार उनकी सहमतिके बिना समझौता भी नहीं हो सकता था।

यशके तीसरे पात्र बारडोलीके स्त्री-पुरुष तो हैं ही। उनकी वीरता और सन्तुलनके बिना यह लड़ाई जोर पकड़ ही नहीं सकती थी और न उसका शुभ अन्त ही हो सकता था।

और लोग धन्यवादके पात्र नहीं हैं सो बात नहीं है। इस लेखका उद्देश्य सम्बन्धित व्यक्तियोंको धन्यवाद देना नहीं है। वह तो उन सबको कई स्थानोंसे प्राप्त हो गया है। मैंने मुख्य पात्रोंका जो उल्लेख किया है वह भी मूल हेतुको देखते हुए ही।

मूल हेतु है भविष्यका विचार करना। जो जीत हुई है उसके उपलक्ष्य में हम मिठाई खाकर सो जायें तो जीत निरर्थक हो जायेगी और लोग जैसे थे, वैसे ही बने रहेंगे। इसलिए भविष्यका विचार करते समय हमें उक्त तीनों पात्रोंको ध्यान में रखना जरूरी है।

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