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भाषण: बारडोलीमें–१

दोनोंके प्रति अन्याय होगा। अपने-अपने क्षेत्रमें दोनों ही अच्छे या बुरे हो सकते हैं। घोड़ेको घोड़ेके पैमानेसे और हाथीको हाथीके पैमानेसे मापनेपर जो अनुत्तीर्ण होगा उसे अनुत्तीर्ण माना जायेगा। इसी प्रकार यदि हम शास्त्रीजी को सत्याग्रहके पैमानेसे मापेंगे तो यह उनके साथ अन्याय करना होगा। वे सरकारकी सेवा करते हुए भी जनताकी कितनी सेवा करते हैं यदि हम इसका हिसाब लगाने बैठें तो हमें पता चल जायेगा कि इस क्षेत्रमें वे अद्वितीय हैं। और फिर कहीं वे सत्याग्रहके मैदानमें कूद पड़ें तो इसमें भी वे अद्वितीय सिद्ध होंगे। मैं मानता हूँ कि शास्त्रीजी-जितना सन्तोष ईमानदारीके साथ अन्य कोई नहीं दे सकता। मेरी रायमें तो वे जो-कुछ करते हैं वह शुद्ध अन्तःकरणसे करते हैं।

शास्त्रीजी द्वारा मुझे पता चला है कि अब सुशीला अच्छी अंग्रेजी बोलने लगी है। तुमसे सम्बन्धित इस प्रकारकी खबरें मैं तुम्हींसे पानेकी आशा रखता हूँ।

बारडोलीके बारेमें समझौता हो चुका है, अतः मैं अब आश्रम वापस लौट रहा हूँ। बा और महादेव मेरे साथ हैं। सुब्वैया बादमें आ गया था। प्यारेलाल, रामदास और रसिक तो यहाँ पहलेसे ही थे। उन्हें क्या करना है, इसका निश्चय अब होगा। देवदास जामिया मिलिया, दिल्लीमें है। प्रभुदास अलमोड़ामें है। आश्रममें एक सम्मिलित भोजनालय चलानेका हालमें ही निर्णय किया गया है। इसलिए अब अलग खाना बनानेवाले बहुत कम लोग रह गये हैं। नया वर्ष आरम्भ होनेके पहले-पहले वे भी अलग खाना बनाना बन्द कर देंगे। फिलहाल संयुक्त भोजनालयमें १४० व्यक्ति भोजन करते हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ ४७४२) की फोटो-नकलसे।

 

२०१. भाषण: बारडोलीमें – १[१]

[१२ अगस्त, १९२८][२]

सभाके कार्यका आरम्भ हमने ईश्वर-भजनसे किया है। हमें यह चेतावनी मिल चुकी है कि विजयका गर्व नहीं करना चाहिए। किन्तु केवल इतना ही काफी नहीं है। यह कहना भी काफी नहीं है कि बारडोलीके भाई-बहनोंने अपने पराक्रमसे यश प्राप्त किया है। वल्लभभाई-जैसे नेताके अथक प्रयत्नोंसे हमें यह विजय मिली है, यह बात सही है, पर यह भी काफी नहीं है। उन्हें वफादार, परिश्रमी और सच्चे साथी न मिले होते तो यह विजय हमें नहीं मिल सकती थी। लेकिन इतना कहना भी काफी नहीं है।

सत्याग्रहका नियम है कि हम किसीको अपना शत्रु न मानें। लेकिन ऐसे भी मनुष्य होते हैं जिन्हें हम स्वयं शत्रु न मानें किन्तु जो हमें शत्रु ही मानते हैं और

 

  1. यह और अगला भाषण, दोनों 'अमृतवाणी' शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित हुए थे। यह भाषण आम सभामें दिया गया था।
  2. यंग इंडिया, १३-९-१९२८ के अनुसार।