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भाषण: बारडोलीमें – १

अधिकारियोंका, विधान-सभाके सदस्यों आदिका भी है ही। जिन्होंने भी शुद्ध हृदयसे यह चाहा हो कि लड़ाईमें समझौता हो जाना चाहिए, हमें इस विजयमें उन सबका हिस्सा मानना चाहिए। हम ईश्वरका आभार तो मानते ही हैं। किन्तु ईश्वर तो अलिप्त रहकर अपना कार्य हम मिट्टी के पुतलोंको निमित्त बनाकर करा लेता है। इसलिए हम इस विजयका श्रेय उन सब लोगोंको बाँटें जिन्होंने इसमें अपना योग दिया है। इसके बाद हमारे लिए थोड़ा-सा ही बच रहेगा और वही ठीक है।

यह तो अभी तुम्हारी प्रतिज्ञाके पूर्वार्धका ही पालन हुआ है। उसके उत्तरार्धको पूरा करना अभी बाकी है। सरकारसे हमें जो लेना था वह हम ले चुके हैं। और वह अपना काम कर चुकी है तो अब तुम्हें अपना पुराना बकाया भूमि-कर तुरन्त दे देना चाहिए। वह तुम जल्दी ही चुका देना। इसके सिवा जिन लोगोंने हमारा विरोध किया था उनसे अब तुम मित्रताका सम्बन्ध बना लेना। जो पुराने अधिकारी अभी इस ताल्लुकेमें रह गये हों उनसे भी तुम मित्रता कर लेना। यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो कहा जायेगा कि तुमने अपनी प्रतिज्ञाका भंग किया है। अपनी प्रतिज्ञाके पहले भागकी पूर्तिके लिए हमें सरकारके पास जानेकी आवश्यकता थी, किन्तु उसका उत्तरार्ध तो हमें स्वयं ही सिद्ध करना है। हमारे हृदयमें किसीके लिए भी बुरा भाव न हो, क्रोध न हो — अपनी प्रतिज्ञाके इस शेषांशको अभी हमें सिद्ध करना है। अब हम जरा और आगे बढ़ें। यह प्रतिज्ञा तो हमारी एक नई और छोटी-सी प्रतिज्ञा है। यह समुद्रमें बूंद-जैसी है। सन् १९२२ में इस ताल्लुकेमें हमने जो प्रतिज्ञा ली थी वह एक भीषण प्रतिज्ञा थी। वह भीषण प्रतिज्ञा आज भी बाकी है। अभी हमने जो किया है वह तो गोया उस प्रतिज्ञाकी पूर्तिके लिए ली गई तालीम है। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ और तुमसे अनुरोध करता हूँ कि अब तुम उस महाप्रतिज्ञाका पालन करो।

जिस नेताके नेतृत्व में तुमने इस प्रतिज्ञाका ऐसा सुन्दर पालन किया है उसी नेताकी आज्ञाका अनुसरण करते हुए तुम अपना यह बाकी काम भी करो। ऐसा स्वार्थत्यागी सरदार तुम्हें दूसरा नहीं मिलेगा। वे मेरे सगे भाई जैसे हैं, किन्तु उन्हें यह प्रमाणपत्र देते हुए मुझे संकोच नहीं होता।

अपनी छाती पर गोली झेलनेको मैं बहुत कठिन नहीं मानता। किन्तु रोज काम करना, अपने साथ प्रतिक्षण लड़ना और आत्मशुद्धि करना बहुत कठिन है। दो भिन्न प्रकारके लोग गोली खा सकते हैं। उनके गोली खानेमें भेद है। अपराधी, अपराध करके, गोली खाता है किन्तु क्या उससे स्वराज्य मिलता है? आत्मशुद्धि करके जो गोली खाता है उसका गोली खाना ही स्वराज्यकी प्राप्ति करा सकता है। और यह बहुत मुश्किल काम है। जिसके पास खानेको अन्न नहीं, पीनेको पानी नहीं, पहननेको कपड़ा नहीं है, उसे खाने-पीनेकी सुविधा जुटा देना, उसे उद्यम देना, उसे कपड़ा देना — इस कार्यमें अपना योग देना, यह एक मुश्किल काम है। उत्कलवासियोंकी हालत कितनी बुरी है, यह तुममें से अधिकांश भाई-बहन नहीं जानते। उनके शरीरमें बस हड्डियाँ-ही-हड्डियाँ रह गई हैं, यह बात मैंने खासकर बहनोंसे कई बार कही है। यदि वह सब बात मैं तुम लोगोंको सुनाने लगूं तो तुम्हारी और