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भाषण: बारडोलीमें–२

थी। मेरा विश्वास है कि ऐसा न्याय सत्याग्रहके द्वारा जितनी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है उतनी आसानीसे किसी अन्य रीतिसे नहीं प्राप्त किया जा सकता।

सत्याग्रहका प्रताप

हमारी इस लड़ाईकी सफलतासे देशको कुछ आश्चर्य हुआ है। किन्तु आश्चर्य होनेका कोई कारण नहीं है। देशको आश्चर्य इसलिए हुआ कि सत्याग्रहसे उसका विश्वास डिग गया था। भारतके पास सत्याग्रहकी शक्तिका इतना बड़ा कोई दूसरा उदाहरण नहीं था। बोरसद और नागपुरके उदाहरण थे तो सही और यद्यपि मैंने किसी जगह यह बात कही नहीं है तथापि हमारी नागपुरकी विजय भी सम्पूर्ण विजय थी। हमारे सौभाग्य या दुर्भाग्यसे उस समय हमारे पास 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के प्रतिनिधि-जैसा हमारा विज्ञापन करनेवाला कोई नहीं था। उसने हमारी जो निन्दा की उसके कारण, भारत में ही नहीं सारी दुनियामें, बारडोलीकी प्रसिद्धि हो गई। अन्यथा हमने ऐसा कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया था। बड़ा काम तो तब कहा जायेगा जब हम १९२१ की अपनी अधूरी रह गई प्रतिज्ञाका पालन करेंगे। जबतक हम वैसा नहीं कर पाते तबतक बारडोलीपर उसको पूरा करनेका उत्तरदायित्व रहेगा। मैं अभी ऐसा कहना चाहता था कि इस प्रतिज्ञाका पालन करनेके बाद ही बारडोलीपर लगा हुआ कलंक दूर होगा। किन्तु उस शब्दका प्रयोग मैंने नहीं किया। हम इसे कलंक नहीं कह सकते, क्योंकि बारडोलीमें हम जो नहीं कर सके हैं उसे हम बारडोलीके बाहर भी कहीं नहीं कर सके हैं। अस्तु, इसे हम उत्तरदायित्व उठाना कहें या कलंक धोना, उसका समय अभी आना शेष है। अपने उस कर्तव्यको पूरा करने में हमारी यह लड़ाई सहायक सिद्ध होगी। इसीलिए मैं इसका स्वागत करता हूँ।

पूर्ण विजय

यह हमारा सौभाग्य है कि ऐसी लड़ाई लड़नेका अवसर हमें बारडोलीमें प्राप्त हुआ और हमें उसमें पूर्ण सफलता भी प्राप्त हुई। हमने जो माँगा था वह हमें पूरा सोलह आने मिल गया। अपनी माँगमें हमने जो शर्तें रखी थीं, उनसे ज्यादा शर्तें भी हम रख सकते थे। जाँचकी शर्तोंमें हम कह सकते थे कि करकी वसूलीमें जो-जो अन्याय किये गये हैं उनकी जाँच होनी चाहिए। किन्तु हमने यह माँग नहीं की। यह वल्लभभाईकी उदारता है। सत्याग्रहीको मूल वस्तु मिल जाये तो उसे सन्तोष हो जाता है। फिर वह और लोभ या आग्रह नहीं रखता।

अब क्या करना चाहिए?

तो अब हमें क्या करना है? हम इस उत्सवको आत्मनिरीक्षणका अवसर बनायें। जो स्वयंसेवक केवल इस लड़ाईके लिए आये थे और लड़ाई समाप्त होते ही जाना चाहते थे, वे जरूर चले जायें। किन्तु जिन्हें जाने की जरूरत न हो, जिनपर वल्लभभाईकी आँख लगी हो वे यहीं रह जाएँ और ऐसा समझें कि यही काम करने योग्य है। इस काममें उनकी योग्यताकी परीक्षा हो जायेगी।