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भाषण: बारडोलीमें – २

तक मोटरमें आये। ऐसे रास्ते में मेरे समान निर्बल आदमी तो थक ही जायेगा न? मगर इसमें कसूर किसका है? इसमें केवल सरकारका ही दोष नहीं निकालना चाहिए। उसमें हमारा भी दोष है ही। गुजरातके समान ही चम्पारनकी भी स्थिति थी और वहाँ स्वयंसेवकोंने रास्ता दुरुस्त किया था। मैं यह नहीं कहना चाहता कि चूंकि कल मुझे उस रास्ते जाना पड़ा था, इसलिए मैं यह शिकायत करता हूँ। किन्तु रास्तेको हमें ही सदा साफ रखना चाहिए। यह करनेका फर्ज भले ही सरकारका हो, किन्तु यदि हम यह सेवा करना चाहेंगे तो सरकार इसमें हमारे आड़े नहीं आयेगी।

यहाँ शिविरों में जो सत्याग्रही रह रहे हैं उन्होंने आरोग्यके नियमोंका कितना प्रचार किया है? इसमें छूत-अछूतका प्रश्न नहीं है। यहाँ तो प्रश्न यह है कि जिनके साथ हम रहते हैं, उनके साथ हमारी कितनी सहानुभूति है? अगर हम सिर्फ अपने आसपासकी ही जमीन साफ रखकर सन्तोष मान लें, तो स्वराज्य नहीं ले सकेंगे। जब लोगोंकी ओरसे इतना सहकार और अनुकूलता है, तो इस भूमिको सुवर्णभूमि बनाया जा सकता है। यहाँकी काली मिट्टी सोनेके जैसी तो है ही। अगर इसके रास्ते हम साफ रखें तो साँप, बिच्छू आदिकी जो शिकायत सुनने में आती है, वह सदाके लिए मिट जायेगी। मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ कि यह काम स्वराज्यका ही एक अंग है।

मद्य निषेध

इसी तरह शराबके प्रश्नको भी हाथ में लेना हमारा धर्म है। इसमें सरकार भला क्या कर सकती है? वह बहुत हुआ तो इतना ही कर सकती है कि भट्टी-वालेको शराबका ठेका न दे। किन्तु लोगोंको पीनेकी जो आदत पड़ी हुई है, उसे सरकार कैसे सुधार सकती है? जिस दिन सरकार २५ करोड़की आमदनी छोड़ने की हिम्मत दिखलानेको तैयार होगी, उस दिन भी लोगोंके पास उनसे शराब छुड़वानेके लिए फूलचन्दभाईकी भजन-मण्डलीको ही जाना होगा। इस तरह लोगोंकी चोट अपने माथे सहनेको हम तैयार होंगे? जहाँ हिन्दू और मुसलमान परस्पर गला काटनेको तैयार हों, क्या वहाँ तुम छातीपर गोलियोंकी बाढ़ सहोगे? इसके विरुद्ध भी ऐसा ही शुद्ध सत्याग्रह कर सकोगे? १९२१ में हमने शराबकी दुकानों पर पहरे बैठाये थे। मगर हमारे ही लोगोंने, जो खुद शराब पीनेवाले थे, दूसरों पर जुल्म किया, जिससे वह बन्द करना पड़ा था।[१]

हिन्दू-मुस्लिम एकता[२]

और क्या आप हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करनेके लिए अपने प्राणोंकी बलि चढ़ा देने को तैयार हैं? जब साम्प्रदायिकताकी आग भड़क उठेगी और लोग अपना आपा खो बैठेंगे तब क्या आप अपना मन शान्त रखकर शुद्ध सत्याग्रह कर सकेंगे?

 

  1. १७ नवम्बरको बम्बईमें, प्रिंस ऑफ वेल्सके दौरेके समय।
  2. यह १३-९-१९२८ के यंग इंडियाले लिया गया है।