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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

चरखा शास्त्री बनो

इसके बाद हम चरखे पर आयें। क्या चरखेपर तुम्हें इतनी श्रद्धा है कि तुम्हें इस बातका विश्वास हो कि अगर चरखा न होता तो यह लड़ाई शक्य ही नहीं होती? अगर तुमने यह वस्तु समझी हो कि रानीपरजमें हमारे स्वयंसेवकोंने चरखेके द्वारा उनपर अच्छी छाप डाली थी और उनकी प्रीति प्राप्त की थी, तो क्या तुम चरखा शास्त्री बनने को तैयार होगे? राम या अल्लाहका नाम लेते हुए क्या शान्ति से चुपचाप चरखेका काम करोगे? आज सारे देश में तकुवा सुधारनेवाले छः या सात आदमी ही होंगे। तकुआ बिलकुल सीधा होना चाहिए, यह शोध चरखा-युग के आरम्भमें ही हो चुकी थी। मैसूर राज्यकी ओरसे खादीका काम हो रहा है। उन्होंने भी सीधे तकुए बनानेका प्रयत्न कर देखा है। वहाँसे भी नमूने आये, पर सभी लौटा देने पड़े। लक्ष्मीदास सीधे तकुएके लिए जर्मनीसे पत्र-व्यवहार कर रहे हैं। अगर हर आदमी इसमें दिलचस्पी लेने लगे तो सभी इसे अपने आप ही कर ले सकते हैं। अगर हर आदमीको तकुआ सीधा करना आ जाये तो हमारा काम कितना सरल हो जाये? चरखेके काममें ऐसी जो दो-चार उलझनें हैं, वे सुलझाई जा सकें तो आज चरखेके जरिये बहुत अधिक काम किया जा सकता है। क्या इस काममें सरदार तुम्हारी दिलचस्पी पैदा कर सकेंगे? अथवा तुम कहोगे कि वल्लभभाई ऐसा कोई काम करनेको नहीं कहते, यह तो साबरमतीबाला ही अपना राग अलापता रहता है? मगर उसे दूसरा कुछ न आये तो वह और करे भी क्या?

दलित वर्गका प्रश्न

इसके बाद भयंकर प्रश्न दलित-वर्गका है। उसीमें 'दुबलों' का प्रश्न भी आ जाता है। ऊँची जातिके कहे जानेवाले लोग क्या रानीपरज लोगोंके साथ घुलमिल सकेंगे? क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि यह किये बिना भी तुम स्वराज्य ले सकोगे? या तुम्हें लगता है कि एक बार स्वराज्य मिल जानेपर जो लोग अपनी जिदपर अड़े रहेंगे उन्हें तुम मार-मार कर सीधा कर लोगे?

जीतका सच्चा उपयोग

तुम अगर सारे हिन्दुस्तानको स्वतन्त्र करने में इस जीतका उपयोग करना चाहते हो तो इस, और ऐसे ही दूसरे मसलोंका हल तुम्हें निकालना ही पड़ेगा? अगर तुम यह नहीं, कोई दूसरा ही रचनात्मक काम करना जानते हो तो उसे करो। लड़ाई थोड़ी देर चलकर पीछे तो मन्द पड़नी ही चाहिए, किन्तु लड़ने की शक्ति बड़वानलकी तरह सुषुप्त दशा में कायम ही रहती है। उसका उपयोग हमें दूसरे रचनात्मक कामोंमें करना चाहिए। हमें कई काम करने हैं, क्योंकि हमारे कलंक भी तो कम नहीं हैं। मिस मेयोको गाली देना सहज है। यह सही है कि उन्होंने जो लिखा सो शत्रुताके भावसे लिखा है, मगर मैं यह नहीं स्वीकार करूँगा कि उनके लेखोंमें कोई सार ही नहीं है। उन्होंने जो प्रमाण दिये हैं उनमें से कुछ तो सच्चे ही हैं। यद्यपि उनसे उन्होंने जो अनुमान निकाले हैं वे प्रायः गलत हैं। हममें बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह आदिकी जो कुप्रथाएँ हैं, विधवाओंसे जो अमानुषी बरताव होता है, उसका भला हम क्या करें?