२०६. पत्र: किशोरलाल मशरूवालाको
सोमवार [१३ अगस्त, १९२८][१]
तुम्हें या नानाभाईको मैं क्या आश्वासन दूं? तुम दोनों तो मृत्युको मित्र समझने वाले हो। हमें जो दुःख होता है वह तो अपने स्वार्थके कारण ही होता है। मरनेके पहले बालूभाईने मुझे एक स्नेहपूर्ण पत्र लिखा था। पत्र बारडोलीके विषयमें था। वे तो यहाँ आना चाहते थे। डॉक्टरने इनकार कर दिया इसलिए उन्होंने पत्र लिखकर ही सन्तोष कर लिया। ऐसे समय आश्रम जो सेवा कर सकता हो उसे लेनेमें चूकोगे तो गलती करोगे। आश्रम बच्चोंकी देखभालकी जिम्मेदारी भी उठा सकता है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ २६५९) से।
सौजन्य: कनुभाई नानालाल मशरूवाला
२०७. पत्र: नीलकण्ठ मशरूवालाको
सोमवार [१३ अगस्त, १९२८][३]
तुम्हारी तरफसे तो नहीं किन्तु अकोलासे तार मिला। बालूभाईकी आत्मा तो शान्तिमें ही है। स्वार्थके वशीभूत होकर यदि हम रोना चाहें तो भले रोयें किन्तु तुमने तो परमार्थका पाठ सीखा है। इस अवसर पर उसका उपयोग करना और स्वयं धीरज रखते हुए दूसरोंको भी धीरज बँधाना। यहाँसे जो सेवा हो सकती हो सो लेना।
समय-समयपर मुझे लिखते रहना।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ९१७२) की नकलसे।
सौजन्य: नीलकण्ठ मशरूवाला