२०८. पत्र: सुभाषचन्द्र बोसको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१४ अगस्त, १९२८
आपका पत्र और साथ में प्रदर्शनीके बारेमें भेजा गया परिपत्र भी मिला। अब मैं जान गया हूँ आपका उद्देश्य क्या है और अब मैं आपके दृष्टिकोणको समझ सकता हूँ। लेकिन, मुझे खेद है कि मैं इसका समर्थन नहीं कर सकता। परिपत्रके अनुसार आपको बहुत-सी विदेशी वस्तुओं तथा मिलके कपड़ेको भी प्रदर्शनीमें स्थान देनेकी छूट होगी। मद्रास और कलकत्तामें केवल यही अन्तर होगा कि कलकत्ता ब्रिटिश मालको स्थान नहीं देगा, जबकि मद्रास प्रदर्शनीमें ब्रिटिश मशीनोंका प्रदर्शन किया गया था। इन परिस्थितियोंमें अखिल भारतीय चरखा संघको प्रदर्शनीमें शरीक करनेके मामलेसे मैं अपने-आपको व्यक्तिशः अलग ही रखना चाहूँगा।
हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी
बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी
१, वुडवर्न पार्क, कलकत्ता
अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १५९५) की फोटो-नकलसे।
२०९. पत्र: डॉ॰ सुरेशचन्द्र बनर्जीको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१४ अगस्त, १९२८
बारडोलीमें आपके दो पत्र मिले। मैं अभी वहाँसे लौटा हूँ। 'यंग इंडिया' में आपकी रिपोर्टके बारेमें मैं जरूर लिखूँगा[१]।
प्रदर्शनीके सम्बन्धमें मैं श्रीयुत सुभाष बाबूसे पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ। साथमें उनको लिखे सबसे ताजा पत्रकी[२] प्रति भेज रहा हूँ। मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि आगामी प्रदर्शनीके विषयमें जैसा कुछ सोचा जा रहा है, उसे मैं पसन्द नहीं करता। यदि मेरा बस चले तो मैं ब्रिटिश माल ही क्यों, सिवाय ऐसे विदेशी मालके,