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२१७. दक्षिण आफ्रिकी प्रमार्जन योजना

गत सप्ताह भी मैंने प्रमार्जन योजना (कंडोनेशन स्कीम) के बारेमें लिखा था।[१] उसीके सिलसिले में अब मैं उन लोगोंकी जानकारी के लिए, जिन्हें दक्षिण आफ्रिकामें अधिवासके अधिकार प्राप्त हैं, गत १३ जुलाईके 'इंडियन ओपिनियन' के परिशिष्टांकसे लेकर निम्नलिखित प्रासंगिक पत्र-व्यवहार[२] प्रकाशित कर रहा हूँ:

नीचे प्रमार्जन अनुमति पत्र[२] (कंडोनेशन परमिट) का वह फार्म दे रहा हूँ जो २९ जून, १९२८के 'यूनियन गवर्नमेंट गजट' में प्रकाशित विनियमोंके अन्तर्गत प्रमार्जन योजनाका लाभ प्राप्त कर सकनेवाले व्यक्तियोंको दिया जायेगा।

पाठकोंको यह चेतावनी देनेकी जरूरत नहीं होनी चाहिए कि मैं व्यक्तिगत रूपसे लोगोंका कोई मार्गदर्शन नहीं कर पाऊँगा। जो-कुछ कर सकता हूँ वह जरूरी कागजोंके प्रकाशनके ही रूपमें कर सकता हूँ। इससे अधिक जानकारी चाहनेवाले लोगोंको मैं प्रसंगानुसार ट्रान्सवाल भारतीय कांग्रेस, नेटाल भारतीय कांग्रेस या केप टाउन ब्रिटिश भारतीय परिषदसे सम्पर्क स्थापित करनेकी सलाह दूंगा।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १६-८-१९२८

 

२१८. समयका संकेत

बारडोली समयका संकेत है। सरकार और जनता दोनों इससे शिक्षा ले सकते हैं। हाँ, सरकार भी ले सकती है, बशर्ते कि जब सत्य जनताके पक्षमें हो और उसे अपने उचित स्थानपर प्रतिष्ठित करानेके लिए जनता अहिंसाके आधारपर अपनेको संगठित कर सकती हो तब सरकार उसकी शक्तिको स्वीकार करने को तैयार हो। कोई भी समझदार सरकार जनताकी ऐसी शक्तिको इस प्रकार स्वीकार करके अपनी सत्ताको सुदृढ़ बनाती है। तब उसकी सत्ताका आधार जनताकी सद्भावना और सहयोग होता है। उस अवस्थामें वह केवल उसकी शक्ति से भयभीत होकर कर्मसे ही उसके साथ सहयोग नहीं करती, बल्कि वाणी और मनसे भी सहयोग करती है। यदि अहिंसात्मक शक्तिका ठीकसे संचय किया जाये तो उससे एक ऐसी ताकत पैदा होती है जिसका रास्ता कोई नहीं रोक सकता। जहाँतक मैं देख पाया हूँ, इसमें कोई सन्देह नहीं कि सरकारने न चाहते हुए भी एक ऐसे जनमतके दबावके कारण यह समझौता किया है जिसकी शक्ति ज्यामितिक रीति से बढ़ती जा रही थी। कहते हैं, परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय प्रारम्भसे हो सत्याग्रहियोंकी माँगोंको स्वीकार करनेको अत्यन्त उत्सुक थे, लेकिन

 

  1. देखिए "टिप्पणियाँ", ९-८-१९२८ का उपशीर्षक 'दक्षिण आफ्रिकामें दी गई रियायत'।
  2. २.० २.१ देखिए परिशिष्ट ३।