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समयका संकेत

उनके सलाहकार उसी दृढ़ता के साथ विरोध कर रहे थे। यदि यह बात सच हो तो जहाँ यह गवर्नर महोदयके लिए श्रेयकी बात है वहीं सरकारके लिए एक बहुत अशुभ-सूचक चीज है। कारण, ब्रिटिश सरकार किसी व्यक्तिकी सरकार नहीं, बल्कि यह व्यक्तियोंके निजी आग्रहोंका कोई खयाल न करते हुए अपना काम करते जानेवाला एक शक्तिशाली संगठन है। ग्लैड्स्टोन और डिजरैली चले गये, किचनर और रॉबर्ट्स नहीं रहे, फिर भी इस संगठनका अस्तित्व कायम है। भारत सरकारके पीछे जो संगठन काम कर रहा है वह है गैर-सैनिक प्रशासनिक सेवा (सिविल सर्विस)। बारडोली-संघर्षके सेनानी सरदार वल्लभभाई इसी वर्गके अधिकारियोंका हृदयपरिवर्तन चाहते थे। लोगोंको ऐसा बताया गया है और वे यही देख पाये हैं कि यह वर्ग समझौते से सन्तुष्ट नहीं है। यदि वह सन्तुष्ट होता तो सरदारके खिलाफ जो झूठे प्रचारका मुहिम चल रहा है, वह बन्द हो गया होता। जब मैं बारडोलीमें था, उन दिनों ऐसे झूठे प्रचारमें रुचि रखनेवालोंसे प्रेरित अखबारोंमें मैं बराबर यह शिकायत देखा करता था कि वल्लभभाई पटेलने समझौतेके सम्बन्धमें अपना दायित्व पूरा नहीं किया है, जबकि मैं जानता था कि वे अपना दायित्व यथासम्भव तेजीसे पूरा कर रहे थे और उस दायित्वके जिस हिस्सेके बारेमें शिकायत की गई थी उसे वे पहले ही पूरा कर चुके थे — शिकायत करनेसे भी पहले। इसपर मैं तो सिर्फ यही कह सकता हूँ कि यदि यह सच है कि गैर-सैनिक सेवा-संगठन इस समझौतेका विरोध कर रहा है तो सरकारका विनाश अवश्यम्भावी है, बशर्ते कि हम यह मानकर चलें कि बारडोली का अहिंसात्मक संगठन एक ऐसा संगठन है जो व्यक्ति विशेषके बिना भी चलता रहेगा।

इसलिए अब हम बारडोलीकी जनताकी बात लें। जो शिक्षा उसे ग्रहण करनी है वह यह कि जबतक वह अहिंसाके आधारपर संगठित रहती है तबतक उसे किसीसे नहीं डरना है — अनिच्छुक सरकारी अमलेसे भी नहीं। लेकिन क्या उसने वह शिक्षा ग्रहण की है, क्या उसने अहिंसाकी छिपी शक्तिको पहचान लिया है, क्या उसने यह महसूस कर लिया है कि यदि उसने तनिक भी हिंसा की होती तो उसका संघर्ष विफल रहता? यदि हाँ, तो उसे प्रतिदिन इस बातकी अनुभूति होगी कि जब-तक वह, जिसे सामूहिक आत्म-शुद्धिकी सतत प्रक्रिया कह सकते हैं, उस प्रक्रियासे न गुजरेगी तबतक अहिंसाके आधारपर अपनेको संगठित नहीं रख पायेगी। यह आत्म-शुद्धि वह तभी कर सकती है जब सबका हित-साधन करनेवाले उस सुविचारित रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा करने में लग जाये, जिसके लिए मिल-जुलकर प्रयत्न करना आवश्यक है। दूसरे शब्दोंमें पहले उसे अहिंसाकी शिक्षा ग्रहण करनी है — केवल भाषणों और लेखोंके जरिये ही नहीं, यद्यपि ये दोनों भी जरूरी हैं, बल्कि निरन्तर सामूहिक रूपसे ऐसे कार्य करते रहकर जिनमें से प्रत्येक अहिंसाकी भावना जगानेवाला हो। उसे करनेके बाद ही वह यह दावा कर सकती है कि वह अहिंसाके आधारपर पूर्णतः संगठित है। श्रीयुत वल्लभभाई पटेल जानते हैं कि उन्हें क्या करना है। उन्होंने अपने सिर इस कठिन रचनात्मक कार्य या कहिए आन्तरिक सुधारके कार्यका भार