ले लिया है। ईश्वरसे मेरी यही प्रार्थना है कि उन्हें सरकारके विरुद्ध किये गये संघर्ष में जैसी सफलता मिली वैसी ही सफलता इस काम में भी प्रदान करे।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-८-१९२८
२१९. नेहरू रिपोर्ट
पण्डित मोतीलाल नेहरू और उनके सहयोगी[१] शतशः बधाईके पात्र हैं। जिस प्रश्नको लेकर सभी दल पिछले कई महीनोंसे परेशान थे, उसपर वे बहुत ही उपयोगी और प्रायः सर्वसम्मत रिपोर्ट तैयार कर पाये हैं। मोटे अक्षरोंमें पुस्तकाकार छपी इस रिपोर्टकी रूप-सज्जा बड़ी अच्छी है। सार्वजनिक जीवनसे सम्बन्ध रखनेवाले किसी भी व्यक्तिका काम इसके बिना नहीं चल सकता। इसपर हस्ताक्षर करनेवाले सज्जन हैं — पण्डित मोतीलाल नेहरू, सर अली इमाम, सर तेजवहादुर सप्रू, श्रीयुत मा॰ श्री॰ अणे, सरदार मंगलसिंह, मु॰ शुएब कुरेशी, श्रीयुत सुभाषचन्द्र बोस और श्रीयुत जी॰ आर॰ प्रधान। अलबत्ता, मु॰ शुएब कुरेशीके हस्ताक्षरके विषयमें रिपोर्टके अन्तमें निम्नलिखित टिप्पणी दी गई है:
रिपोर्ट १३३ पृष्ठकी है और परिशिष्ट १९ पृष्ठके। रिपोर्ट दस परिच्छेदोंमें बँटी हुई है, जिनमें से चारमें साम्प्रदायिक प्रश्न, विधान मण्डलके स्थानोंके आरक्षण, प्रान्तोंके पुनर्गठन और देशी राज्यों पर विचार किया गया है। सातवें परिच्छेदमें समितिकी अन्तिम सिफारिशें हैं। यहाँ मुझे रिपोर्टका सार देनेकी झंझटमें नहीं पड़ना चाहिए — और किसी कारणसे नहीं तो इसी कारणसे कि यह मुझे 'यंग इंडिया' के लिए कुछ आखिरी लेख भेजते समय मिली है। इसे पूरा पढ़ पानेका भी समय मुझे नहीं मिल पाया है। बस, एक सरसरी निगाह ही डाल पाया हूँ। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि सर्वदलीय सम्मेलनकी समिति एक सर्वसम्मत रिपोर्ट तैयार कर पाई है, जिसपर प्रभावशाली प्रतिनिधियोंके हस्ताक्षर हैं। संविधानके सम्बन्धमें असली बात सर्वथा निर्दोष सिफारिशें करना नहीं, बल्कि वर्तमान परिस्थितियोंमें जो
- ↑ १९ मई, १९२८ को बम्बई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन द्वारा "भारतके लिए एक संविधान बनानेके लिए सिद्धान्त निर्धारित करने के उद्देश्यते" नियुक्त एक उप-समिति। (इंडिया इन १९२८-२९, पृष्ठ २६)।