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टिप्पणियाँ

सबसे अच्छी मानी जा सकें, ऐसी सिफारिशें सर्वसम्मतिसे करना था। और समिति बहुत ही कठिन परिश्रमके बाद जो व्यावहारिक मतैक्य प्राप्त कर पाई है, उसपर यदि वह सम्मेलन, जो शीघ्र ही लखनऊमें होने जा रहा है,[१] अपनी मुहर लगा देता है तो स्वतः विकसित होनेवाले स्वराज्यसे भिन्न संवैधानिक स्वराज्यकी दिशामें एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया जा चुका होगा। कारण, जो प्रश्न देशके मानसको वर्षोंसे आन्दोलित करते रहे हैं, उनपर यदि कामचलाऊ ढंगका सर्वसम्मत निर्णय हो जाता है तो अगला कदम यह होगा कि हम अपनी मांगोंको स्वीकार कराने के लिए काम करें। और हम देशके इतिहास में अपने विकासकी ऐसी अवस्था में पहुँच गये हैं कि यदि हममें किसी भी बुद्धिसंगत प्रस्तावके सम्बन्धमें वास्तविक मतैक्य हो जाये तो उसे स्वीकार कराने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि लखनऊमें नेता लोग इस कामको सम्पन्न कर देनेका संकल्प लेकर मिलेंगे और जो सदस्य वहाँ जायेंगे वे इस रिपोर्टकी धज्जियाँ उड़ा देनेके खयालसे इसकी आलोचनात्मक परीक्षा नहीं करेंगे, बल्कि एक समुचित समाधान ढूँढ़नेकी दृष्टि से इसपर विचार करेंगे। और यदि वे रिपोर्टके प्रति यह रवैया रखेंगे तो सिफारिशोंका समर्थन अवश्य करेंगे। हाँ, यदि किसीके पास वैसा न करनेके लिए कोई उचित कारण हो, ऐसा उचित कारण जो किसी भी समझदार आदमीको ठीक मालूम हो, तो बात अलग है। इस प्रकार इस रिपोर्टकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित करते हुए मैं पण्डित मोतीलाल नेहरूको बधाई देता हूँ, जिनके प्रयत्नके बिना न कोई समिति नियुक्त होती, न मतैक्य होता और न रिपोर्ट ही तैयार हो पाती।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १६-८-१९२८

 

२२०. टिप्पणियाँ
बारडोली-कोषमें चन्दा देनेवालों के लिए

बारडोली- सत्याग्रहके लिए कोष एकत्र करनेके लिए की गई अपीलका लोगोंने जितनी उदारताके साथ सोत्साह उत्तर दिया है, वह बारडोली-सत्याग्रहकी अखिल भारतीय लोकप्रियताका निश्चित प्रमाण है। बारडोलीके प्रश्नके निबटारे और फलस्वरूप सत्याग्रह बन्द कर दिये जाने से कोषको आगे चालू रखना अनावश्यक हो गया है। इसलिए लोगोंसे अनुरोध है कि वे कोषके लिए और चन्दा न भेजें। मगर इसका मतलब यह नहीं कि अब पैसेकी जरूरत होगी ही नहीं। जाँचके सिलसिलेमें अब भी काम करना शेष है और उसपर कुछ खर्च तो बैठेगा ही। और सत्याग्रह-संघर्षके दौरान जो भारी शक्ति पैदा हुई, उसे यदि बरबाद नहीं करना है तो रचनात्मक कार्य दूने जोरसे करना होगा। इसलिए जो पैसा बच रहा है उसका उपयोग अव्वल तो जाँचके सम्बन्धमें होनेवाले खर्चके सिलसिलेमें किया जायेगा और दूसरे, उसके

 

  1. २८ अगस्त, १९२८ को होनेवाला सम्मेलन; देखिए "लखनऊके बाद", ६-९-१९२८।