साथ-साथ दो ताल्लुकोंमें रचनात्मक कार्यपर किया जायेगा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस संघर्षको संगठित कर पाना इसीलिए सम्भव हुआ कि बारडोलीमें गत सात वर्षोंसे रचनात्मक कार्य चल रहा था। मुझे मालूम है कि कुछ स्थानोंमें कांग्रेस कमेटियों तथा खास-खास लोगोंने बारडोलीके लिए और भी धन इकट्ठा कर रखा है, लेकिन उन्होंने इन रकमोंको किस्तोंमें भेजना पसन्द किया है। उन्हें यह सूचित करने की जरूरत नहीं कि उनके पास अब जो पैसा बच रहा हो उसे वे या तो साबरमती आश्रमको भेज दें या बारडोली स्वराज आश्रमको, अथवा नवजीवन कार्यालयको या कांग्रेस कार्यालय, अहमदाबादको। मुझे मालूम हुआ है कि श्रीयुत वल्लभभाई पटेल हिसाब-किताबकी विधिवत् लेखा परीक्षा करवाकर उसे प्रकाशित करने की व्यवस्था कर चुके हैं।
दक्षिण आफ्रिकासे मिला चन्दा
दक्षिण आफ्रिकासे एक भाई लिखते हैं:
बारडोली-संघर्षके विरुद्ध झूठे प्रचारोंकी जो मुहिम चलाई गई है, उसे मैं बड़े दुःखके साथ लक्षित करता रहा हूँ। जाहिर है कि इस संघर्षको हानि पहुँचाने के लिए हर तरहकी नीचता और बिलकुल साफ तौरपर बेहूदा दीखनेवाली बातोंका सहारा लिया गया, यद्यपि इस संघर्षका उद्देश्य किसीका नुकसान करना नहीं था और न इसका कोई राजनीतिक लक्ष्य ही था। सचाईको जाननेकी कोई परवाह किये बिना और शायद इस संघर्षको हानि पहुँचाने के इरादेसे इस झूठको प्रचारित किया गया कि सत्याग्रहियोंको दक्षिण आफ्रिकासे लाखों रुपये मिल रहे हैं। खैर, सत्याग्रहके उद्देश्यकी तो झूठे प्रचारसे कोई हानि नहीं हुई। लेकिन यदि गोरे उपनिवेशियोंको यह विश्वास दिलाया जा सके कि दक्षिण आफ्रिकासे बारडोलीको मोटी-मोटी रकमें भेजी जा रही हैं और सो भी एक ऐसा आन्दोलन चलानेके लिए जो शायद उन्हें पसन्द न हो तो दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके हितको बड़ी आसानीसे हानि पहुँचाई जा सकती है। लेकिन मैं आशा करता हूँ कि इस बातकी ओर दक्षिण आफ्रिका में बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया होगा। जो भी हो, जो बात पत्र लेखकने लिखी है, उसकी पुष्टि में कर सकता हूँ। बारडोली-कोषमें कहाँसे कितनी रकम आई, इसका हिसाब बारडोलीमें पड़ा है और उसे कोई भी देख सकता है और देखनेवाले पायेंगे कि दक्षिण आफ्रिकाको तार द्वारा दी गई भड़कानेवाली सूचनाकी अपेक्षा इस पत्र-लेखक द्वारा दी गई जानकारी ज्यादा सच्ची है।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-८-१९२८