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२२१. हमारी जेलें

मैं भारतकी जेलों में दो वर्ष रहा। फिर भी देखता हूँ कि मेरी अपेक्षा बहुत कम समय तक इन जेलोंमें रहनेवाले लोग इनके रंग-ढंगके बारेमें मुझसे कहीं ज्यादा जानते हैं। हाल में रिहा किये गये सत्याग्रही कैदियोंने मुझे ऐसे अनेक कष्टों और कठिनाइयों के बारेमें बताया है जिनसे, यदि कैदियोंको मनुष्य समझकर उनका कुछ खयाल किया जाये तो, बचा जा सकता है। सूरत जेलसे आये एक सत्याग्रही कैदीने बताया कि सभी कैदियोंको एक ऐसे कमरेमें ठूंस दिया जाता था जिसमें न ठीकसे हवा आती है और न प्रकाश। जो खाना दिया जाता है वह पचनेवाला नहीं होता और कैदियोंको अपने आपको साफ सुथरा रखनेकी कोई विशेष सुविधा नहीं दी जाती।

साबरमती केन्द्रीय जेलके कैदियोंने मुझे ज्यादा विस्तारसे जानकारी दी है। जो आटा दिया जाता है, वह रेतीला रहता है, दालमें कंकड़ होते हैं और अक्सर चूहे आदिकी मींगे मिली रहती हैं। सत्याग्रही लोग इसके लिए जेल-अधिकारियोंको माफ कर देनेको तैयार हैं। उनका कहना है कि यह तो जिन कैदियोंको सफाई-पिसाईका काम दिया जाता है, उनकी गलती थी। मैं ऐसा दृष्टिकोण अपनानेमें असमर्थ हूँ। मेरा खयाल है कि खाद्य पदार्थोंकी सफाईका ध्यान रखना अधिकारियोंका कर्तव्य है। इसके लिए वे या तो बाहर इनकी सफाई करायें या अगर जेलोंमें सफाई करायें तो इस कामकी खुद ठीकसे निगरानी करें। कैदियोंसे यह अपेक्षा करना व्यर्थ है — विशेषकर उन्हें जिस दशामें रखा जाता है, उसे देखते हुए — कि वे यह काम या कोई भी काम अच्छी तरहसे और विवेकपूर्वक करेंगे। उनसे रसोई पकानेका यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण काम लेनेके बजाय यह अधिक अच्छा और आर्थिक दृष्टिसे लाभकर रहेगा कि खाना पकानेका और उससे पहले उसकी सफाई-पिसाई आदिका काम भरोसेके लायक दूसरे लोगोंसे कराया जाये और कैदियोंसे ऐसे दूसरे काम लिये जायें जो आर्थिक दृष्टिसे अधिक लाभप्रद और स्वास्थ्यको हानि पहुँचानेवाले न हों।

और शिकायत केवल यही नहीं है कि भोजन अस्वच्छ और जैसे-तैसे पकाया हुआ होता था। उन्हें सब्जीके नामपर ऐसी सूखी-सी गोभी दी गई जिसमें फफूंदी लग गयी थी और जिससे दुर्गन्ध आने लगी थी। लोगोंने इसका जैसा वर्णन किया उससे मैंने तो यही समझा कि पशुओंके लिए संग्रह करके रखी गई हरी घासकी नकलपर इस गोभीको मनुष्यको खिलाने के लिए सुखाकर रखा गया था और बादमें इसमें खूब उबाल देकर इसमें फिरसे रस और हरापन लाया गया था। यदि मुझे दी गई जानकारी सही हो तो मैं तो यही कह सकता हूँ कि जेल-अधिकारी कैदियोंकी जानसे, जिनकी हिफाजतकी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है, खिलवाड़ कर रहे हैं।

रिहा किये गये कैदियोंमें से तीन बहुत कमजोर थे। इनमें से एक विद्यार्थी था जो पूरी सजा काटकर बहुत ही नाजुक हालतमें जेलसे बाहर आया था। उसकी हालत इतनी बिगड़ गई थी कि महाविद्यालयके आचार्यों और विद्यार्थियों तथा डाक्टरों