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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

द्वारा किये गये तमाम सेवा-उपचारके बावजूद अभीतक वह खतरेसे बाहर नहीं निकल पाया है। मुझे बताया गया कि उसे बुखार था, तब भी कई दिनों तक उसे ज्वारकी मोटी रूखी-सूखी रोटीपर रखा गया। अजब नहीं कि इस अपाच्य रोटीके कारण ही उसकी अंतड़ीमें सूजन पैदा हो गई हो।

इन आरोपोंके उत्तरमें यदि अधिकारीगण कोई स्पष्टीकरण देना चाहें तो उसे मैं सहर्ष प्रकाशित करूँगा।

मैं जानता हूँ आज जैसी परिस्थितियाँ हैं, उनमें कैदी लोग घरेलू जीवनकी सुविधाओंकी अपेक्षा नहीं रख सकते। मैं यह भी जानता हूँ कि सत्याग्रहियोंको अपनी इस अवस्था पर, जिसे एक प्रकारसे उन्होंने अपनी इच्छासे ही स्वीकारा है, शिकायत नहीं करनी चाहिए। फिर भी, किसी भी सत्याग्रहीके साथ, चाहे वह शिकायत करे या नहीं, मानवोचित व्यवहार तो करना ही चाहिए। और उसे ऐसा भोजन मिलना चाहिए जो उसके शरीरके लिए उपयुक्त हो और प्राथमिक महत्त्वकी बात तो यह है कि स्वच्छ और स्वच्छ ढंगसे तैयार किया हुआ हो।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, १६-८-१९२८

 

२२२. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१६ अगस्त, १९२८

प्रिय मोतीलालजी,

आपकी रिपोर्ट एक भारी महत्त्वका दस्तावेज है। मुझे उम्मीद है कि लखनऊमें जो सम्मेलन होने जा रहा है वह बिना सोचे-समझे इसकी धज्जियाँ नहीं उड़ाने लग जायेगा, बल्कि इसपर जितनी गम्भीरतासे विचार करना योग्य है उतनी गम्भीरता से विचार करेगा। रिपोर्ट अपने-आपमें इतनी महत्त्वपूर्ण है कि लखनऊमें सभी सदस्योंका उपस्थित होना निश्चित है।[१]

आपकी चेतावनी मिलनेके पहलेसे ही मैं यह सोचने लग गया था कि अगले साल क्या किया जा सकता है। लेकिन मैं स्वीकार करता हूँ कि अभीतक मुझे कोई मनपसन्द चीज सूझ नहीं पाई है। शायद लखनऊसे कुछ प्रेरणा मिले।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६६०) की फोटो-नकलसे।

 

  1. देखिए "नेहरू रिपोर्ट", १६-८-१९२८ भी।