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२२३. पत्र: नानाभाई मशरूवालाको

आश्रम, साबरमती
१६ अगस्त, १९२८

भाईश्री नानाभाई,

तुम्हारा पत्र मिला। नीलकंठका भी मिला। और किशोरलालका पत्र भी आया है। ज्यों-ज्यों विचार करता हूँ त्यों-त्यों ऐसा लगता है कि बालूभाई गये ही नहीं हैं। उनकी फैलाई हुई सुगन्ध क्या कभी उड़ सकती है? तथापि यह ठीक है कि हमें उनके देहावसानका दुःख होता है। मुझे इस दुःखमें अपना सहभागी मानना। नाथसे कहना कि कल मैंने किशोरलालको अकोला में रुक जानेका तार दिया है।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

यह सबेरे तीन बजे लिखवाया था। उसके बाद तुम्हारा बम्बईसे भेजा हुआ पत्र मिला।

मूल गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ २६६०) से।

सौजन्य: कनुभाई नानालाल मशरूवाला

 

२२४. भाषण: अहमदाबादमें[१]

[१६ अगस्त, १९२८][२]

आजके इस उत्सव में मेरे हाजिर होनेकी कोई जरूरत नहीं थी और न यहाँ बोलनेकी ही जरूरत है। वल्लभभाईको जहाँ मानपत्र दिया जाये, और जहाँ मैं होऊं वहाँ यदि मुझसे कुछ बोलनेको कहा जाये तो उसका अर्थ यह हो जाता है कि हम दोनों इकट्ठे होकर आप लोगोंके समक्ष और आपकी सहमतिसे एक-दूसरेकी प्रशंसा करनेवाले लोगोंका एक संघ बना रहे हैं और उस संघके सदस्य बन रहे हैं। अहमदाबादके बुद्धिमान् नागरिकोंको तो यह चीज बिलकुल भी सहन नहीं करनी चाहिए।

वल्लभभाई अपने नामसे पटेल हैं और उनकी ख्याति भी उसीके अनुरूप है। बारडोलीमें विजय प्राप्त करके उन्होंने पटेलोंकी प्रतिष्ठाकी रक्षा की है। कोई सेठ अपनी साख, अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा करे तो क्या किसीने ऐसा सुना है कि कोई उसे मानपत्र देता है। मंगलदास सेठ अपने पास आनेवाली सारी हुंडियोंको सकारते

 

  1. १९-८-१९२८ के नवजीवन में "अमृतवाणी" शीर्षकके अन्तर्गत प्रकाशित।
  2. बॉम्बे सीकेट एब्स्ट्रेक्टस, पृ॰ ५३९, अनुच्छेद १३१४ के अनुसार।

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