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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं इसके लिए उन्हें कितने मानपत्र दिये गये हैं। हाँ, यह मैं नहीं जानता कि यदि वे इन इंडियोंको न सकारें तो आप क्या करेंगे।

यदि आप इस जीतकी बधाई लेना या देना चाहते हैं तो आप उसके रहस्यको समझिए और समझकर उसका अनुकरण कीजिए। या यों कहूँ कि उसमें से जितना आप हजम कर सकें उतना लें और उसे अपने आचरणमें उतारें। सफलता अनुकरणमें नहीं होती और किसी वस्तुका अक्षरशः अनुकरण किया भी नहीं जा सकता। दो भिन्न अवसरोंमें कुछ समानता भले दीखती हो किन्तु जिस तरह हर मनुष्यकी एक निजी विशेषता होती है उसी प्रकार हर अवसरकी भी एक निजी विशेषता होती है। अतः जो मनुष्य सत्याग्रहके रहस्यको समझकर, उसे पचाकर, अवसरकी विशेषताके अनुसार उसे अपने आचरणमें उतारता है उसीको सफलता मिलती है।

असहयोग, सत्याग्रह, सविनय कानून-भंग आदि शब्दोंका नाम असंख्य बार लिया जाता है। उनके नामपर जिस तरह कुछ अच्छे काम हुए हैं, उसी प्रकार कुछ गलत काम भी हुए हैं। हम इन शब्दोंका उच्चारण करते हैं क्योंकि प्रत्येक पक्षके कार्यकर्ताओंमें स्वराज्यकी आकांक्षा तो है। किन्तु सिर्फ आकांक्षा से तो कुछ नहीं हो सकता। प्यासा आदमी 'प्यास-प्यास' चिल्लाये तो इससे उसकी प्यास नहीं बुझ सकती। उसे तालाब या कुआँ खोदना होगा या वहाँसे पानी मँगाना होगा तभी उसकी प्यास बुझेगी। इसी तरह यदि आप सत्याग्रहकी प्रशंसा सुनकर ही सन्तोष कर लेंगे तो आप भूल करेंगे।

इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप सत्याग्रहका रहस्य समझिए। बारडोलीमें वल्लभभाईकी नहीं सत्य और अहिंसाकी विजय हुई है। अगर आपको ऐसा लगता हो कि यह बहुत अच्छा हुआ और ठीक हुआ तो आप अपने हर कार्यमें इसका प्रयोग कीजिए। आप प्रयोग करेंगे तो आपको सफलता मिलेगी ही, यह मैं नहीं कह सकता। ईश्वरने हमें त्रिकालदर्शी नहीं बनाया इसलिए हम यह नहीं जान सकते कि हमें सच्ची सफलता मिली है या नहीं। कोई मनुष्य किसी समय सफल हुआ है या असफल, यह अन्ततक नहीं कहा जा सकता। इसीलिए मणिलाल[१] यह अमर वाक्य कह गये हैं: "लाखों निराशाओंमें अमर आशा छिपी हुई है।" अतः यदि किसी प्रकारकी आशा किये बिना, निष्काम भावसे आप उस सत्य और अहिंसाकी आराधना करेंगे जिसकी आराधना वल्लभभाईने की है तो आपको जयमाला पहनानेवाले अवश्य मिल जायेंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १९-८-१९२८

 

  1. गुजराती कवि।