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हिन्दू धर्मकी ब्राह्मसमाज द्वारा की हुई सेवा

यह श्रद्धा कृत्रिम उपाय से उत्पन्न नहीं हो सकती। सरदार इस श्रद्धाके पात्र थे। इसलिए उन्होंने लोगोंके हृदय चुम्बककी तरह अपनी ओर खींच लिए।

इस प्रकार हमने यह देख लिया कि सत्याग्रहकी लड़ाईमें सुसंस्कृत, त्यागी और लोगोंकी भावनाको परखनेवाला सरदार मिल जाये और लोग वफादार रहें तो उनकी जीत अवश्य होती है।

इस लड़ाईमें सत्य और शान्ति प्रधान थे। लोगोंकी माँग सच्ची थी और उसे सिद्ध करनेके लिए लोगोंने असत्यका प्रयोग नहीं किया। लोगोंके सम्मुख अशान्ति अथवा हिंसाके कई अवसर आये, किन्तु उन्होंने पूर्ण शान्ति रखी। इसका अर्थ यह नहीं है कि लोग शान्तिको धर्मके रूपमें समझ गये हैं अथवा क्रोध उनके मनमें भी नहीं आता था; अवश्य ही वे शान्तिके व्यावहारिक रूपको समझ गये हैं; अपना कर्त्तव्य समझ गये हैं, उन्होंने अपने क्रोधको रोका और स्वयं मार-काट न करके उनपर जो-जो कष्ट आये उनको सहन किया।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १९-८-१९२८

 

२३२. हिन्दू धर्मकी ब्राह्मसमाज द्वारा की हुई सेवा[१]

२० अगस्त, १९२८

इस सभामें आकर ब्राह्मसमाजके शताब्दी उत्सवके इस शुभ अवसरपर मैं कुछ कहनेकी योग्यता रखता हूँ, ऐसा मैं बिलकुल नहीं मानता। यह विनयकी भाषा नहीं है; मैं तो सच्ची बात कह रहा हूँ। तथापि मैं यहाँ बैठा हुआ हूँ और यदि ब्राह्मसमाजके विषय में कुछ कहूँगा तो प्रेम और भक्तिके अनुरोधसे ही कहूँगा। मैं रमणभाईका भक्त हूँ। जबसे मैंने रमणभाईको जाना तभीसे मैं यह समझता आया हूँ कि रमणभाई अहमदाबादके भूषण हैं, गुजरातकी शोभा हैं। इसलिए जब विद्याबहनने मुझे लिखा, यदि मैं आऊँ और इस अवसरपर दो शब्द कहूँ तो उन्हें बहुत प्रसन्नता होगी, तो उनका अनुरोध मैं टाल नहीं सका। मैंने उन्हें जवाब दिया कि मैं इस अवसरके लिए कोई तैयारी कर सकूँ, यह सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा कि तैयारी किये बिना अपने अनुभवके आधारपर जो कहना चाहूँ वही कहूँ। इसलिए मैं यहाँ आ गया।

मैं अपनेको इस कार्यके योग्य क्यों नहीं मानता इसका कारण मैं आपको बताऊँ। राजा राममोहन रायके कार्यके विषयमें मैं अगर कुछ जानता हूँ तो उतना ही जानता हूँ जितना मैंने मित्रोंसे सुना है अथवा जब-तब समाचार-पत्रोंमें पढ़ा है। उसके सिवा मैं और कुछ नहीं जानता। इसका यह मतलब नहीं है कि राममोहन रायके प्रति मेरा आदर कुछ कम है। लेकिन मेरा अध्ययन जबसे समाप्त हुआ

 

  1. ब्राह्मसमाजकी स्थापनाकी शताब्दि-पूर्तिके उपलक्ष्य में अहमदाबाद के प्रार्थना-समाजके भवन में आयोजित सभामें दिये हुए भाषणका सारांश।