पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परिवारने बंगालके जीवनमें, हिन्दुस्तानके जीवनमें और आगे जाकर कहूँ तो जगतके जीवन में कितना बड़ा योगदान दिया है। जो हिमालयकी तलहटीमें बसते हैं, वे हिमालयकी पूरी शोभा नहीं देख सकते। उसी तरह इसकी सही कल्पना नहीं हो सकती कि धर्मके इतिहासमें ठाकुर-कुटुम्बका कितना बड़ा योगदान है। हम उनकी चमकसे चौंधिया जाते हैं। उनमें भी रवीन्द्रनाथने तो हद कर दी है। यह प्रभाव ब्राह्मसमाजका है। ब्राह्मसमाजने बुद्धिका द्वार खोला सही, किन्तु श्रद्धाका स्थान भी कायम रखा। इसमें महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुरका बहुत बड़ा भाग है। एक समय ऐसा भी आया जब ब्राह्मसमाजके संकुचित हो जानेका भय था। ईसाई धर्मका असर इतना बढ़ गया था कि वह वेद-धर्मसे अपना सम्बन्ध तोड़ ही डालता। मगर देवेन्द्रनाथकी तपश्चर्या और ज्ञानसे ब्राह्मसमाज इस संकट से उबर गया और हिन्दू धर्मकी ही एक शाखा बना रहा।

ब्राह्मसमाजके इस योगदानका हिसाब अगर हम सौ वर्ष बाद लगाने बैठें तो वह हमें इस समाजकी संख्या से नहीं लगाना चाहिए। इसकी संख्या से कम है। यह संस्था संख्याकी वृद्धिके लिए कोई प्रयत्न भी नहीं कर रही है। ब्राह्मसमाजी आप ही अपना काम करते चले जा रहे है। समाजका प्रचार करने में कोई नहीं लगा है, इसलिए वे कम हो रहे हैं। ब्राह्मसमाजकी हिन्दू धर्मकी सेवा हिन्दूधर्मको शुद्ध रखने में है, हिन्दूधर्ममें बुद्धिवादको महत्त्वका स्थान दिलाने में है। हम देख सकते हैं कि ब्राह्मसमाजमें उदारता है, झगड़ा नहीं है। वह संकुचित नहीं है, दूसरे धर्मोके प्रति उदार है। कुछ संकुचित मनके हिन्दुओंने एक समय माना था कि ब्राह्मसमाज हिन्दू-धर्मसे भिन्न एक अलग ही धर्म है। कितने ब्राह्मसमाजी भी कहते थे कि हम अलग ही हैं, हिन्दू नहीं। ये दोनों मान्यताएँ भूलसे भरी हुई हैं। इन पुस्तकोंको जो यहाँ पड़ी हुई हैं, मैंने पहले नहीं देखा था। इन्हें मैंने थोड़ा उलट-पुलटकर देखा तो मैं यह देख सका कि इनपर वैदिक धर्मकी छाया पड़ी है। वेद-धर्म तो ब्राह्मसमाजमें व्यापक वस्तु है। ब्राह्मसमाजकी सेवाका हिसाब जोड़ते समय इतिहास यह नहीं कहेगा कि इसमें इतने आदमी थे। वह तो यह कहेगा कि उसने हिन्दू धर्ममें प्रवेश करके उसकी उदारता कायम रखी और शुद्ध धर्म-भावना और एक ईश्वरकी भक्तिके तत्त्वका उत्तम विकास किया।

मैं ब्राह्मसमाजकी टीका सुनाने बैठूँ तो बहुत कुछ सुना सकता हूँ। अपने निकट परिचयसे मैं बहुत-कुछ देख सका हूँ। किन्तु वह सुनानेका अवसर आज नहीं है। आज ब्राह्मसमाजकी शताब्दी है। इसलिए इसमें मैंने जो भला देखा है वही मुझे आपके आगे रखना चाहिए। अब मैं अपना काम निकाल लेना चाहता हूँ सही। मैंने आपको ब्राह्मसमाजके मधुर संस्मरण सुनाये सो इसलिए कि आपका धर्मभाव कायम रहे; आपमें अगर धर्मके विषय में उदासीनता हो तो आपकी धर्मभावना जाग्रत हो।

बम्बई प्रदेशमें ब्राह्मसमाजका कमसे कम प्रभाव पड़ा है। इसका अर्थ यह नहीं कि बम्बई प्रदेश में धर्मभावना कम थी। कारण यह है कि यहाँ पर जो सम्प्रदाय थे, वे जाग्रत रहे हैं। बम्बईके प्रार्थना समाजका उद्देश्य भी इतना ही था कि जो