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२३५. 'सच्ची पूँजी और झूठी पूँजी'

सर डैनियल हैमिल्टन बहुत बड़ी सम्पत्तिके स्वामी हैं, सुन्दरबनमें उनकी बड़ी भू-सम्पत्ति है और वे बैंक-व्यवस्था तथा सहयोग आन्दोलनके जागरूक अध्येता हैं। गत बारह महीनोंमें उन्होंने भारतीय बैंक-व्यवस्थापर कई निबन्ध लिखे हैं और वे उन्हें समय-समयपर मेरे पास भेजनेका भी सौजन्य दिखाते रहे हैं। मैंने उनसे 'यंग इंडिया' के पाठकोंके लिए बैंक-व्यवस्था पर ऐसे लेख लिखनेका अनुरोध किया जो आम लोगोंकी समझमें आने लायक हों। वे तुरन्त सहमत हो गये और लेख भेजनेका बिना कोई निश्चित समय बताये उन्होंने जो वादा किया था उसे उन्होंने शीघ्र ही पूरा भी कर दिया। परिणाम-स्वरूप अब मेरे हाथमें उनका लिखा एक निबन्ध है, जिसका शीर्षक है — "मनुष्य या अर्थपिशाच अथवा सच्ची पूँजी और झूठी पूँजी इस निबन्धको मैंने पाँच हिस्सोंमें बाँट दिया है, जिनमें से पहला इसी अंकमे अन्यत्र दिया जा रहा है।[१] मैं बैंक-व्यवस्थाके विषय में कुछ जाननेका दावा नहीं करता। मुझे दुःखके साथ स्वीकार करना पड़ता है कि मैं भारतीय वित्त व्यवस्थाका अध्ययन करनेका समय कभी नहीं निकाल पाया, यद्यपि इस विषयको मैं बहुत महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। इसलिए मैं सर डैनियल हैमिल्टनकी दलीलोंपर कोई राय देने में असमर्थ हूँ। लेकिन मेरे लिए तो इतना ही काफी है कि स्पष्ट ही सर डैनियलने बिना किसी पूर्वग्रहके बड़ी ईमानदारी के साथ लिखा है। 'यंग इंडिया' के पाठकोंको मेरी सलाह है कि वे सर डैनियल हैमिल्टनके लेखोंको ध्यान से पढ़ें। भारतके वित्त-व्यवस्था विशेषज्ञ लोगोंको यदि इनपर कोई टीका करनी हो तो उसे मैं सहर्ष प्रकाशित करूँगा।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-८-१९२८

 

२३६. सभीकी नजर लखनऊपर

नेहरू समितिकी रिपोर्टकी ओर सबका ध्यान गया है और यह सर्वथा उचित भी है। उन सभी प्रमुख भारतीयोंने जिन्होंने उसके सम्बन्धमें अपनी राय व्यक्त की है, इसके लिए शुभकामनाएँ की हैं। आलोचकोंको इसके विषय में लिखते हुए अपनी कलमें बहुत संयत रखनी पड़ी हैं और उन्हें बिना किसी प्रगट प्रयासके अक्सर इसकी प्रशंसा करनी पड़ी है। इसने सभीको सोचनेको बाध्य कर दिया है।

इसलिए स्वभावतः सभीकी नजर लखनऊपर लगी हुई है, जहाँ डॉ॰ अन्सारीने सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया है। जिस रिपोर्टने अपनी ओर लोगोंको इतना अधिक

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। शेष चार हिस्से यंग इंडियाके अगले चार अंकों में प्रकाशित हुए थे।