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सभीको नजर लखनऊपर

आकृष्ट किया है, उसपर विचार करने के लिए निश्चय ही प्रातिनिधिक हैसियत रखनेवाले बहुत से लोग एकत्र होंगे।

सम्मेलन क्या करेगा? सम्मेलनको कार्यवाहीको निरर्थक बना देना और नेहरू समितिके परिश्रमपर पानी फेर देना बहुत आसान काम होगा। मुसलमान लोग चाहें तो इतने धैर्य और प्रयत्नसे खड़ी की गई इस इमारतको इस आधारपर नष्ट कर दे सकते हैं कि उन्हें वह सब-कुछ नहीं मिला है जो वे चाहते थे। हिन्दू लोग चाहें तो रंचमात्र भी न झुकनेका निश्चय करके प्रगतिको असम्भव बना दे सकते हैं। राजनीतिशास्त्रके पण्डितोंको इसमें बहुत सारे दोष दिखाई दे सकते हैं। लेकिन यदि वे इस रिपोर्टपर अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोणसे विचार करेंगे तो सबके-सब गलती करेंगे। हमें फिर इस रिपोर्ट-जैसी कोई दूसरी चीज, जिसपर प्रातिनिधिक हैसियत रखनेवाले लोगोंके हस्ताक्षर हों, आसानीसे नहीं मिलनेवाली है।

इसलिए सब इस रिपोर्टपर एक ही दृष्टिकोण से विचार करें, और वह है राष्ट्रीय दृष्टिकोण। समितिने जैसा संविधान सुझाया है, उसके अन्तर्गत प्रत्येकके लिए अपनी-अपनी योग्यताके अनुसार पूरी ऊँचाई तक उठनेकी गुंजाइश है। प्रत्येक विहित हितकी सुरक्षाकी पूरी गारंटी है, बशर्ते कि उसमें खुद फूलने-फलनेकी क्षमता हो। मताधिकार तो इससे अधिक व्यापक हो ही नहीं सकता था।

बेशक धैर्यहीन अतिवादियोंको इससे सन्तोष नहीं होगा। मगर वे इस बातको याद रखें कि यह रिपोर्ट इस बातका प्रतीक है कि अक्सर परस्पर विरोधी विचार रखनेवाले पक्षोंके बीच अधिक से अधिक कितनी सहमति हो सकती है। सभी पक्षोंकी आकांक्षाओंका प्रतिनिधित्व करनेवाली इस रिपोर्टका ऐसा तीव्र विरोध नहीं करना चाहिए कि वह धरी की धरी रह जाये। वैसा करना राष्ट्रद्रोह होगा।

यह रिपोर्ट परिस्थितियोंको देखते हुए हमारे इष्ट-साधनके अनुकूल है, इस बातको छोड़ भी दें तो भी मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि इससे सभी वर्गोंकी आकांक्षाओंकी पूर्ति होती है और खुद अपने गुणोंकी कसौटीपर भी यह रिपोर्ट बिलकुल खरी उतरती है। इसलिए नेहरू समितिके कामकी सफल परिसमाप्तिके लिए जो कुछ जरूरी है वह है सिर्फ थोड़ी-सी सहिष्णुता, एक-दूसरेका थोड़ा-सा खयाल रखना, कुछ पारस्परिक विश्वास, थोड़ा-बहुत ले-देकर बातको निबटा देनेकी तत्परता और अपने तुच्छ अहंके प्रति नहीं बल्कि उस महान् राष्ट्रके प्रति भरपूर भक्ति जिसके हम सब बहुत ही अकिंचित्कर सदस्य हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २३-८-१९२८